सच्ची भूतिया कहानी: अंधेरी गली में खोई हुई बच्ची तारा
सच्ची भूतिया कहानी: अंधेरी गली में खोई हुई बच्ची तारा
दिल्ली की एक सुनसान गली में रात के समय एक अजीब घटना हुई, जिसने हर किसी को हिलाकर रख दिया। कुछ लोग कहते हैं कि वहां एक खोई हुई बच्ची की पुकार सुनाई देती है, तो कुछ का मानना है कि यह गली भूतिया है।
प्रिया, जो रोज़ उसी गली से घर जाती थी, एक रात अचानक ऐसी आवाज़ सुनती है जो उसके डर और रोमांच दोनों को बढ़ा देती है। क्या यह सच में कोई बच्ची थी, या कुछ और?
इस कहानी में आप पढ़ेंगे अंधेरी गली की भूतिया घटनाएं, खोई हुई बच्ची तारा की रहस्यमय कहानी, और सच्चा डरावना अनुभव जो आपके रोंगटे खड़े कर देगा।
रोज का वही रास्ता
प्रिया हर शाम साढ़े सात बजे अपने आफिस से निकलती थी। दिल्ली के नोएडा सेक्टर में उसका छोटा सा फ्लैट था। घर पहुंचने के लिए उसे एक छोटी सी गली से गुजरना पड़ता था।
यह गली हमेशा सुनसान रहती थी। दोनों तरफ पुरानी इमारतें थीं जो काफी समय से खाली पड़ी थीं। स्ट्रीट लाइट भी सिर्फ एक ही थी जो अक्सर बंद रहती थी।
प्रिया को इस गली से गुजरने में डर लगता था लेकिन यह रास्ता छोटा था। बाकी रास्ते से जाने में पंद्रह मिनट ज्यादा लगते थे।
"बस पांच मिनट की बात है। तेज-तेज चलकर निकल जाती हूं।" प्रिया हमेशा खुद को समझाती थी।
पहली रात की अजीब आवाज
एक शुक्रवार की शाम प्रिया आफिस से देर से निकली। रात के नौ बज गए थे। गली में घुसते ही उसे एक अजीब सी आवाज सुनाई दी।
"मम्मी... मम्मी कहां हो?"
प्रिया रुक गई। यह किसी छोटी बच्ची की आवाज थी।
"कौन है वहां?" प्रिया ने डरते हुए पूछा।
कोई जवाब नहीं आया। प्रिया ने तेज कदमों से चलना शुरू किया। लेकिन आवाज फिर आई।
"मुझे मेरी मम्मी चाहिए।"
इस बार आवाज बिल्कुल पास से आई। प्रिया ने फोन की टॉर्च जलाई और इधर-उधर देखा। कोई नहीं था।
"शायद मुझे भ्रम हुआ होगा।" प्रिया ने सोचा और तेजी से घर पहुंच गई।
दूसरी रात का डर
अगली रात प्रिया ने सोचा कि वो लंबे रास्ते से जाएगी। लेकिन उस दिन उसका मूड खराब था और थकान भी बहुत थी।
"कल तो कुछ नहीं हुआ। बस मेरा वहम था।" प्रिया ने खुद को समझाया और फिर उसी गली में घुस गई।
आज गली और भी अंधेरी लग रही थी। बारिश हो रही थी और हवा तेज चल रही थी।
प्रिया आधी गली पार कर चुकी थी कि अचानक उसे कुछ दिखा। एक छोटी सी परछाई दीवार के पास खड़ी थी।
प्रिया का दिल तेजी से धड़कने लगा। वो रुकना चाहती थी लेकिन उसके पैर आगे बढ़ते रहे।
जैसे-जैसे वो पास आई, परछाई साफ दिखने लगी। वो एक छोटी बच्ची थी - करीब सात-आठ साल की। सफेद फ्रॉक पहने हुए। बाल खुले थे।
"क्या तुम मेरी मम्मी को ढूंढने में मेरी मदद करोगी?" बच्ची ने पूछा।
बच्ची से मुलाकात
प्रिया को थोड़ी राहत महसूस हुई। कम से कम कोई असली इंसान तो था।
"बेटा, तुम यहां इस वक्त क्या कर रही हो? तुम्हारे घर वाले कहां हैं?" प्रिया ने चिंता से पूछा।
"मुझे अपनी मम्मी चाहिए। वो कहीं चली गईं।" बच्ची रोने लगी।
प्रिया का दिल पिघल गया। वो पास गई और बैठ गई।
"रोओ मत बेटा। मैं तुम्हारी मदद करूंगी। तुम्हारा नाम क्या है?"
"मेरा नाम तारा है।"
"और तुम यहां कैसे आईं?"
"मैं और मेरी मम्मी यहां रहते थे। लेकिन एक दिन मम्मी चली गईं और वापस नहीं आईं।"
प्रिया ने देखा कि बच्ची की फ्रॉक पुरानी और मैली थी। उसके बाल उलझे हुए थे।
"चलो, मैं तुम्हें पुलिस स्टेशन ले चलती हूं। वो तुम्हारी मम्मी को ढूंढ देंगे।"
तारा ने सिर हिलाया।
थाने का रास्ता
प्रिया ने तारा का हाथ पकड़ा। उसका हाथ बर्फ की तरह ठंडा था।
"बेटा, तुम्हारे हाथ इतने ठंडे क्यों हैं? बीमार हो क्या?"
"नहीं, मैं हमेशा ऐसी ही रहती हूं।"
दोनों गली से बाहर निकलीं। मुख्य सड़क पर आकर प्रिया ने ऑटो रोका।
"भाई साहब, पुलिस स्टेशन चलोगे?"
ऑटो वाले ने तारा को देखा और अजीब सा मुंह बना लिया। "दीदी, क्या हुआ है?"
"यह बच्ची खो गई है। मुझे इसे थाने छोड़ना है।"
ऑटो वाला हिचकिचाया लेकिन फिर चलाने लगा।
रास्ते भर तारा चुप रही। प्रिया ने कई बार उससे बात करने की कोशिश की लेकिन वो बस सिर हिलाती रही।
पुलिस स्टेशन पर हैरानी
थाने पहुंचकर प्रिया ने ड्यूटी पर बैठे सिपाही को सारी बात बताई।
"साहब, यह बच्ची उस पुरानी गली में मिली है। इसकी मम्मी खो गई हैं।"
सिपाही ने तारा को देखा और उसका चेहरा सफेद पड़ गया।
"यह... यह बच्ची कहां से आई?" उसकी आवाज कांप रही थी।
"मैंने बताया न साहब, वो गली से। क्या हुआ? आप ऐसे क्यों देख रहे हैं?"
सिपाही ने अंदर जाकर थानेदार को बुलाया। थानेदार बाहर आया और तारा को देखकर पीछे हट गया।
"देवी जी, यह बच्ची आपको कहां मिली?"
"उस पुरानी गली में। क्या बात है? आप सब इतने परेशान क्यों हैं?"
थानेदार ने गहरी सांस ली। "आप अंदर आइए। मुझे आपसे बात करनी है।"
दस साल पुरानी सच्चाई
थानेदार ने प्रिया को अपने केबिन में बिठाया। तारा बाहर सिपाही के पास बैठी रही।
"देवी जी, मैं जो बताने जा रहा हूं, उस पर यकीन करना मुश्किल होगा। लेकिन यह सच है।"
"क्या सच है?" प्रिया की धड़कन तेज हो गई।
"दस साल पहले उसी गली में एक औरत और उसकी बेटी रहते थे। बेटी का नाम तारा था।"
प्रिया चौंक गई।
"एक दिन वो औरत अपनी बेटी को अकेला छोड़कर कहीं चली गई। पता चला कि उसने दूसरी शादी कर ली थी और बेटी को छोड़ दिया था।"
"फिर बच्ची का क्या हुआ?"
थानेदार ने रुककर पानी पिया। "तारा रोज अपनी मां का इंतजार करती रही। खाना नहीं खाया। पानी नहीं पिया। एक हफ्ते बाद जब पड़ोसियों को पता चला तो वो मर चुकी थी।"
प्रिया के रोंगटे खड़े हो गए।
"तब से कई लोगों ने उस गली में एक बच्ची को देखा है। वो अपनी मां को ढूंढती रहती है।"
"यह झूठ है! वो बच्ची अभी बाहर बैठी है।" प्रिया चिल्लाई।
अविश्वसनीय सच
दोनों तेजी से बाहर आए। लेकिन वहां कोई नहीं था।
"वो कहां गई?" प्रिया ने सिपाही से पूछा।
"कौन?" सिपाही ने हैरानी से पूछा।
"वो बच्ची जो यहां बैठी थी!"
"दीदी, यहां कोई बच्ची नहीं थी। आप अकेली आई थीं।"
प्रिया को विश्वास नहीं हो रहा था। "नहीं! वो मेरे साथ थी। तारा नाम की बच्ची।"
थानेदार ने प्रिया को कुर्सी पर बिठाया। "देवी जी, शांत हो जाइए। मैं आपको तारा की तस्वीर दिखाता हूं।"
उसने पुरानी फाइल निकाली और एक फोटो दिखाई। फोटो में वही बच्ची थी - सफेद फ्रॉक पहने, वही चेहरा, वही आंखें।
प्रिया की चीख निकल गई। "यही है! यही वो बच्ची है!"
भूत या मदद की पुकार
प्रिया घर पहुंची तो रात के बारह बज चुके थे। उसे नींद नहीं आ रही थी। तारा की मासूम सूरत उसे याद आ रही थी।
"क्या वाकई वो भूत थी? लेकिन उसने तो मेरा हाथ पकड़ा था। मैंने उसे छुआ था।"
प्रिया पूरी रात सो नहीं पाई। सुबह उसने फैसला किया कि वो फिर से उस गली में जाएगी।
अगले दिन शाम को प्रिया दोबारा उसी गली में गई। इस बार दिन का समय था इसलिए उतना डर नहीं लग रहा था।
गली में उसने देखा कि एक पुरानी इमारत थी जिसका दरवाजा खुला था। प्रिया ने अंदर झांककर देखा।
इमारत बिल्कुल खाली थी। लेकिन एक कोने में कुछ पुराने सामान पड़े थे। प्रिया ने पास जाकर देखा।
वहां एक पुरानी गुड़िया पड़ी थी और कुछ बच्चों के कपड़े। प्रिया के रोंगटे खड़े हो गए जब उसने देखा कि वही सफेद फ्रॉक भी वहां थी।
मां की तलाश
प्रिया को समझ आ गया कि तारा अभी भी इस दुनिया में अटकी हुई है क्योंकि उसकी मां ने उसे छोड़ दिया था।
"मुझे तारा की मां को ढूंढना होगा।" प्रिया ने मन में तय किया।
अगले कुछ दिनों तक प्रिया ने पुराने रिकॉर्ड खंगाले। थाने की मदद से उसे पता चला कि तारा की मां का नाम सुमित्रा था। वो अब एक दूसरे शहर में रहती थी।
प्रिया ने सुमित्रा का फोन नंबर निकाला और उसे कॉल किया।
"हैलो?"
"क्या आप सुमित्रा हैं?"
"हां, आप कौन?"
"मेरा नाम प्रिया है। मुझे आपसे तारा के बारे में बात करनी है।"
फोन की दूसरी तरफ से सन्नाटा छा गया।
मां का अपराधबोध
"तारा के बारे में आपको कैसे पता?" सुमित्रा की आवाज कांप रही थी।
"मैंने उसे देखा है। वो अभी भी आपको ढूंढ रही है।"
सुमित्रा रो पड़ी। "मैं जानती हूं। मैं बहुत बुरी मां हूं। मैंने अपनी बेटी को छोड़ दिया था। हर दिन मुझे उसकी याद आती है। हर रात मैं उसके सपने देखती हूं।"
"आपको वापस आना होगा। तारा को शांति की जरूरत है।"
"लेकिन वो तो मर चुकी है। अब मैं क्या कर सकती हूं?"
"आप उस जगह पर आइए जहां आप दोनों रहते थे। उससे माफी मांगिए। शायद तब वो शांत हो जाए।"
अंतिम मुलाकात
एक हफ्ते बाद सुमित्रा दिल्ली आई। प्रिया उसे उस गली में ले गई। दोनों उस पुरानी इमारत के सामने खड़ी हो गईं।
सुमित्रा की आंखों में आंसू थे। "तारा, बेटी, मैं बहुत गलत थी। मैंने तुझे छोड़ दिया। मुझे माफ कर दे।"
अचानक हवा तेज चलने लगी। सुमित्रा को लगा कि किसी ने उसका हाथ छुआ। वो मुड़ी तो वहां तारा खड़ी थी।
"मम्मी!" तारा मुस्करा रही थी।
"तारा!" सुमित्रा ने उसे गले लगाने की कोशिश की लेकिन तारा धीरे-धीरे गायब होने लगी।
"मम्मी, अब मैं जा सकती हूं। तुम आ गई, बस इतना ही चाहिए था मुझे।"
तारा पूरी तरह गायब हो गई। सुमित्रा जमीन पर बैठकर रो रही थी।
शांति का एहसास
उस दिन के बाद प्रिया ने फिर कभी तारा को नहीं देखा। गली से गुजरते समय अब डर नहीं लगता था।
सुमित्रा ने उस इमारत को साफ करवाया और वहां गरीब बच्चों के लिए एक छोटी सी लाइब्रेरी बनवाई। उसका नाम रखा "तारा पुस्तकालय"।
"यह मेरी बेटी के लिए है। मैं उसे वापस नहीं ला सकती लेकिन उसकी याद को जिंदा रख सकती हूं।" सुमित्रा ने कहा।
प्रिया अक्सर उस लाइब्रेरी में जाती है। कभी-कभी उसे लगता है कि तारा वहां किताबें पढ़ रही है।
कहानी से सीख
तारा की कहानी हमें सिखाती है कि बच्चे अपने माता-पिता से बेहद प्यार करते हैं। उन्हें सिर्फ प्यार और ध्यान चाहिए होता है। जब माता-पिता उन्हें छोड़ देते हैं तो उनका दर्द कभी खत्म नहीं होता।
सुमित्रा ने अपनी बेटी को छोड़ दिया था। उसकी सजा उसे हर रोज मिलती थी। लेकिन जब उसने अपनी गलती मानी और माफी मांगी तो तारा को शांति मिली।
कभी-कभी हम जीवन में ऐसी गलतियां कर देते हैं जिनका बोझ पूरी जिंदगी उठाना पड़ता है। लेकिन माफी मांगने में कभी देर नहीं करनी चाहिए।
अंतिम शब्द
आज भी लोग कहते हैं कि उस गली में कभी-कभी एक बच्ची की हंसी सुनाई देती है। लेकिन अब वो रोने की आवाज नहीं है, खुशी की आवाज है।
तारा को आखिर में वो मिल गया जो वो चाहती थी - अपनी मां की माफी और प्यार। भले ही बहुत देर से मिला, लेकिन मिला तो सही।
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यह कहानी याद दिलाती है कि माता-पिता की जिम्मेदारी सिर्फ जन्म देना नहीं है। बच्चों को प्यार, सुरक्षा और देखभाल की जरूरत होती है। अगर आपके आसपास कोई बच्चा परेशानी में है तो उसकी मदद जरूर करें। आपकी एक छोटी सी मदद किसी की पूरी जिंदगी बदल सकती है।
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