पहाड़ों की आख़िरी रात – एक रहस्यमयी दोस्त की गुमशुदगी
प्रस्तावना
कभी-कभी ज़िंदगी हमें ऐसी जगह ले आती है, जहाँ असली और नकली, सच और वहम, हकीकत और ख्वाब की सरहद मिट जाती है। यह कहानी भी कुछ ऐसी ही है – “पहाड़ों की आख़िरी रात”, जो एक दोस्त की रहस्यमयी गुमशुदगी की दास्तान है।
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यात्रा की शुरुआत
दिल्ली की गर्मी से परेशान चार दोस्त – राघव, समीर, कवि और अरमान – अचानक छुट्टी मनाने का प्लान बनाते हैं। सबकी सहमति से वे हिमाचल के एक छोटे-से हिल स्टेशन की तरफ निकल पड़ते हैं।
जैसे-जैसे वे शहर से दूर होते गए, घुमावदार सड़कों पर रात और भी रहस्यमयी होती गई। चाँदनी रात में पहाड़ किसी अनजाने डर का एहसास करा रहे थे।
राघव ने गाड़ी रोकते हुए कहा –
“यार, रात काफी हो चुकी है। किसी ठिकाने की तलाश करनी होगी।”
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पुराना गेस्ट हाउस
कुछ दूर चलने पर उन्हें एक जर्जर-सा गेस्ट हाउस दिखाई दिया। चारों ने गाड़ी रोकी और भीतर गए। गेट पर जंग लगी थी, लकड़ी का दरवाज़ा चरमराकर खुला।
भीतर चारों तरफ़ सिर्फ़ अँधेरा और सन्नाटा पसरा था। सबने देखा कि पूरे गेस्ट हाउस में सिर्फ़ एक कमरा खुला हुआ था, जबकि बाकी सभी दरवाज़े जंग लगे तालों से जकड़े हुए थे।
समीर ने हल्की हंसी में कहा –
“लगता है हमें हॉरर मूवी का सेट मिल गया।”
कवि के चेहरे पर डर था, पर अरमान ने शांत होते हुए सबको समझाया –
“चिंता मत करो, बस आज की रात यहीं गुज़ारते हैं, सुबह निकल जाएंगे।”
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बेचैन करने वाली रात
कमरे में चारों बिस्तर पर लेट गए। हवा में नमी और दीवारों पर पुरानी तस्वीरें टंगी हुई थीं।
राघव को नींद नहीं आ रही थी। उसने देखा कि खिड़की के बाहर किसी के पैरों की आहट है। पर जब झाँका, तो वहाँ सिर्फ धुंध थी।
कवि ने करवट बदलते हुए कहा –
“कसम से, मुझे लगता है ये घर सामान्य नहीं है।”
आधी रात के सन्नाटे को चीरते हुए दरवाज़े से एक ज़ोरदार धड़ाम की आवाज़ आई। चारों चौंककर उठ बैठे। राघव ने हिम्मत कर दरवाज़ा खोला, पर बाहर सिर्फ़ गहरा सन्नाटा और सर्द हवा थी।
किसी तरह वे फिर से लेट गए और सुबह होने का इंतज़ार करने लगे।
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सुबह की हैरानी
सुबह सूरज की रोशनी खिड़की से कमरे में दाखिल हुई। सब धीरे-धीरे उठे।
लेकिन जब उन्होंने चारों ओर देखा, तो अरमान बिस्तर पर नहीं था।
उसका बैग, उसका फोन – सब वहीं रखा था। दरवाज़ा अंदर से बंद था।
समीर चिल्लाया –
“ये कैसे मुमकिन है? हम सब तो यहीं थे!”
चारों ने मिलकर गेस्ट हाउस के हर कोने की तलाश की, लेकिन अरमान कहीं नहीं मिला।
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रहस्य गहराता गया
गेस्ट हाउस के केयरटेकर बूढ़े चौकीदार से जब उन्होंने पूछा, तो उसने सिर झुकाकर धीमी आवाज़ में कहा –
”साहब… इस कमरे में जाने कितने लोग गुम हुए हैं। यह रातों को किसी को सोने नहीं देता, और इसीलिए मैंने कसम खाई थी कि इस दरवाज़े को हमेशा बंद रखूँगा। लेकिन जाने कैसे ये रात को खुद खुल जाता है।”
यह सुनते ही तीनों दोस्तों के रोंगटे खड़े हो गए।
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खोज और भय
उन्होंने पास के गाँव में जाकर अरमान के बारे में पूछताछ की। गाँव वालों ने डरते-डरते कहा –
“उस पुराने गेस्ट हाउस में रहना मौत को बुलाने जैसा है। वहाँ हर साल कोई न कोई ग़ायब हो जाता है। कहते हैं कि बहुत साल पहले वहाँ एक नौजवान की हत्या हुई थी, और उसकी आत्मा अभी तक चैन से नहीं सो पाई।”
राघव, समीर और कवि अब हिल चुके थे।
लेकिन सवाल ये था – अरमान कहाँ गया?
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रात का सच
तीनों दोस्तों ने ठान लिया कि वे उस रात फिर से उसी कमरे में रुकेंगे, ताकि अपने दोस्त का पता लगा सकें।
रात होते ही कमरे में वही अजीब सन्नाटा लौट आया। आधी रात को अचानक दीवार पर लगी पुरानी तस्वीर गिर गई और उसके पीछे एक गुप्त दरवाज़ा दिखाई दिया।
दरवाज़ा खुलते ही एक अंधेरा रास्ता नीचे तहखाने की ओर जा रहा था। टॉर्च की रोशनी में दीवारों पर खून के धब्बे, टूटी-फूटी कुर्सियाँ और ज़ंजीरें देखकर वे सब सिहर उठे।
और वहीं, कोने में अरमान बेहोश पड़ा मिला।
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परछाई का हमला
जैसे ही वे अरमान को उठाने लगे, अचानक काली परछाई दीवार से निकलकर उन पर झपटी। चारों ओर ठंडी हवा का तूफ़ान चल पड़ा।
उस परछाई की आँखें जल रही थीं और वह चीख रही थी –
“ये घर मेरा है… कोई मुझे चैन नहीं लेने देता!”
राघव ने हिम्मत करके ज़मीन से पड़ा एक लोहे का क्रॉस उठाया और परछाई की तरफ बढ़ाया। जैसे ही क्रॉस परछाई को छूता है, वो भयानक चीख के साथ धुंध में बदलकर ग़ायब हो जाती है।
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सुबह की राहत
सुबह होते ही सब गेस्ट हाउस से बाहर निकले। अरमान धीरे-धीरे होश में आ गया। उसने बताया –
“कल रात मुझे किसी ने खींचकर तहखाने में फेंक दिया था… मैं चिल्ला भी नहीं पाया।”
चारों ने कसम खाई कि वे कभी उस गेस्ट हाउस की ओर रुख नहीं करेंगे।
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निष्कर्ष
कहते हैं कि पहाड़ों की ख़ूबसूरती जितनी सुकून देने वाली होती है, उसका अँधेरा उतना ही डरावना हो सकता है। उस गेस्ट हाउस का रहस्य आज भी एक अनसुलझी पहेली बनकर रह गया है।
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