मुंबई का भूतिया फ्लैट: सस्ता किराया और दिल दहला देने वाली सच्ची हॉरर कहानी

मुंबई का भूतिया फ्लैट: सस्ता किराया और दिल दहला देने वाली सच्ची हॉरर कहानी


मुंबई का भूतिया फ्लैट: सस्ता किराया और दिल दहला देने वाली सच्ची हॉरर कहानी

मुंबई में सस्ते किराये पर फ्लैट मिलना मुश्किल है, लेकिन अनिल को अंधेरी में एक बहुत सस्ता फ्लैट मिल गया — वही फ्लैट जिसे लोग भूतिया फ्लैट और हॉन्टेड अपार्टमेंट कहकर छोड़ चुके थे।
मालिक ने सिर्फ एक नियम बताया — “रात 12 बजे के बाद बाथरूम में मत जाना।”
शुरुआत में अनिल को लगा कि ये बस एक अफ़वाह या पुराना अंधविश्वास है, लेकिन एक रात मजबूरी में उसने वो नियम तोड़ दिया… और उस रात जो डरावनी घटना बाथरूम में हुई, उसने साबित कर दिया कि ये सिर्फ कहानी नहीं — एक सच्ची भूतिया घटना थी, जिसका रहस्य आज तक किसी को नहीं पता। पढ़िए रोंगटे खड़े कर देने वाली भूतिया कहानी।

मुंबई में सस्ता फ्लैट

अनिल को मुंबई में नई नौकरी मिली थी। अच्छी सैलरी थी लेकिन मुंबई का किराया बहुत महंगा था। दो महीने से वो फ्लैट ढूंढ रहा था लेकिन उसके बजट में कोई फ्लैट नहीं मिल रहा था।

एक दिन उसके दफ्तर के चपरासी रमेश ने कहा, "साहब, मेरे मालिक का एक फ्लैट खाली है। बहुत सस्ता है। अंधेरी में है।"

"कितना किराया है?" अनिल ने उत्सुकता से पूछा।

"बस पांच हजार महीना। एक बेडरूम का है।"

अनिल हैरान रह गया। अंधेरी में इतना सस्ता फ्लैट? कुछ तो गड़बड़ जरूर होगी?

"लेकिन इतना सस्ता क्यों है?"

रमेश ने झिझकते हुए कहा, "साहब, वो फ्लैट थोड़ा पुराना है। और... लोग कहते हैं कि वहां कुछ अजीब होता है।"

"कैसी अजीब बात?"

"पता नहीं साहब। लेकिन मालिक सस्ते में देने को तैयार हैं। आप एक बार देख तो लीजिए।"

पहली मुलाकात

अगले दिन अनिल और रमेश उस फ्लैट को देखने गए। बिल्डिंग पुरानी थी लेकिन मजबूत लग रही थी। फ्लैट तीसरी मंजिल पर था।

मालिक "शर्मा जी" पहले से ही वहां इंतजार कर रहे थे। वो एक साठ साल के बुजुर्ग थे।

"आइए बेटा, अंदर से देख लीजिए।" शर्मा जी ने दरवाजा खोला।

फ्लैट अंदर से अच्छा था। एक बेडरूम, रसोई, और बाथरूम। सब कुछ साफ-सुथरा था।

"शर्मा अंकल, यह फ्लैट इतना सस्ता क्यों है?" अनिल ने सीधे पूछ लिया।

शर्मा जी की मुस्कान गायब हो गई। "बेटा, मैं तुमसे झूठ नहीं बोलूंगा। इस फ्लैट में कुछ अजीब बातें होती हैं।"

"कैसी अजीब बातें?"

"पिछले तीन किराएदार एक महीने से ज्यादा नहीं रुके। सब कहते हैं कि रात में अजीब आवाजें आती हैं।"

अनिल को थोड़ा डर लगा लेकिन उसके पास कोई विकल्प नहीं था।

अजीब शर्त

"लेकिन बेटा, अगर तुम रहना चाहो तो एक शर्त है।" शर्मा जी ने गंभीर स्वर में कहा।

"क्या शर्त है?"

"रात बारह बजे के बाद बाथरूम में मत जाना। किसी भी हालत में नहीं।"

"क्या? यह कैसी शर्त है?" अनिल हंस पड़ा।

"मजाक नहीं है बेटा। जो भी रात बारह के बाद बाथरूम में गया है, उसके साथ कुछ न कुछ अजीब हुआ है। प्लीज, यह बात ध्यान रखना।"

अनिल ने सोचा कि शायद यह सब अंधविश्वास है। उसने फ्लैट ले लिया।

पहले कुछ दिन

पहले हफ्ते सब कुछ सामान्य रहा। अनिल सुबह दफ्तर जाता और शाम को वापस आता। रात को खाना खाकर सो जाता।

उसने ध्यान रखा कि रात बारह बजे के बाद बाथरूम न जाना पड़े। शाम को जल्दी पानी पी लेता था। ओर शाम को ही बाथरूम का इस्तेमाल कर लेता था।

लेकिन फिर भी कुछ अजीब बातें होने लगीं। रात में अक्सर पानी गिरने की आवाज आती। जैसे कोई बाथरूम में नल चला रहा हो।

एक रात अनिल को लगा कि कोई बाथरूम के दरवाजे को खटखटा रहा है। लेकिन जब उसने देखा तो कोई नहीं था।

डरावनी रात

तीसरे हफ्ते की एक रात अनिल को तेज बुखार आ गया। उसे बार-बार प्यास लग रही थी और पेट में दर्द हो रहा था।

रात के ग्यारह बजे थे। अनिल ने घड़ी देखी और सोचा - अभी एक घंटा है बारह बजने में। लेकिन पेट दर्द बढ़ता जा रहा था।

बारह बजने से पांच मिनट पहले स्थिति और खराब हो गई। अनिल को तुरंत बाथरूम जाना था।

"सिर्फ पांच मिनट और रुक जाता हूं।" शायद दर्द ठीक हो जाए।" अनिल ने सोचा।

लेकिन दर्द असहनीय हो गया। घड़ी में बारह बज गए। अनिल के पास कोई चारा नहीं था।

"यह सब अंधविश्वास है। कुछ नहीं होगा।" अनिल ने खुद को समझाया और बाथरूम की तरफ बढ़ा।

बाथरूम में प्रवेश

अनिल ने बाथरूम की लाइट जलाई। सब कुछ सामान्य लग रहा था। उसने राहत की सांस ली।

"देखा, कुछ भी तो नहीं हुआ। बेकार का डर।"

लेकिन जैसे ही उसने आईने में देखा, उसकी सांस अटक गई।

आईने में उसके पीछे कोई खड़ा था।

अनिल तेजी से पीछे मुड़ा। लेकिन वहां कोई नहीं था।

"भ्रम होगा।" उसने सोचा।

फिर से आईने में देखा तो वो आकृति अब और साफ दिख रही थी। एक औरत की परछाई थी। लंबे बाल, सफेद साड़ी।

अनिल का दिल तेजी से धड़कने लगा। उसने तुरंत बाथरूम से निकलने की कोशिश की लेकिन दरवाजा नहीं खुला।

"खोलो! दरवाजा खोलो!" अनिल चिल्लाया।

तभी नल अपने आप चालू हो गया। पानी तेजी से गिरने लगा।

भयानक अनुभव

अनिल घबराहट में दरवाजा खटखटाने लगा। लेकिन दरवाजा बंद ही रहा।

अचानक बाथरूम की लाइट बंद हो गई। अब सिर्फ अंधेरा था और पानी गिरने की आवाज।

"कौन है वहां? क्या चाहिए तुम्हें?" अनिल की आवाज कांप रही थी।

तभी उसे महसूस हुआ कि कोई उसके कंधे पर हाथ रख रहा है। उसे बर्फ जैसी ठंडक महसूस हुई।

अनिल ने फोन की टॉर्च जलाई। आईने में अब वो औरत साफ दिख रही थी। उसका चेहरा सफेद था और आंखें खाली।

औरत ने धीरे से कहा, "तुम यहां क्यों आए?"

अनिल इतना डर गया था कि वो बोल नहीं पा रहा था।

"मैंने कहा था न... रात बारह के बाद यहां मत आना।" औरत की आवाज अब गुस्से में थी।

अचानक खुला दरवाजा

अचानक दरवाजा खुल गया। अनिल तेजी से बाहर भागा और सीधे बेडरूम में जाकर दरवाजा बंद कर लिया।

उसका पूरा शरीर कांप रहा था। पसीना छूट रहा था।

"यह सच नहीं हो सकता। मुझे भ्रम हुआ होगा।" अनिल ने खुद को समझाने की कोशिश की।

लेकिन उसे पता था कि जो उसने देखा वो असली था।

पूरी रात अनिल सो नहीं पाया। वो बिस्तर पर बैठा रहा और बाथरूम के दरवाजे को घूरता रहा।

सुबह होते ही अनिल ने तय कर लिया कि वो यह फ्लैट छोड़ देगा।

शर्मा जी से सच्चाई

अगली सुबह अनिल सीधे शर्मा जी के घर गया।

"अंकल, मुझे इस फ्लैट की पूरी सच्चाई जाननी है। कल रात मैंने कुछ देखा।"

शर्मा जी की आंखों में डर दिखा। "तुम रात बारह के बाद बाथरूम में गए थे?"

"हां, मुझे मजबूरी थी। लेकिन अब मुझे सच बताइए। वो कौन थी?"

शर्मा जी ने गहरी सांस ली। "बेटा, पांच साल पहले इस फ्लैट में एक शादीशुदा जोड़ा रहता था। पति-पत्नी। पति शराब पीता था और पत्नी को मारता था।"

"फिर?"

"एक रात उसने अपनी पत्नी को इतना मारा कि वो बाथरूम में गिर गई। उसका सिर बाथरूम के फर्श पर लगा और वो मर गई।"

अनिल के रोंगटे खड़े हो गए।

"पुलिस ने पति को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन तब से उस औरत की आत्मा बाथरूम में भटकती है। खासकर रात बारह बजे के बाद। वो वही समय था जब वो मरी थी।"

किराएदार की कहानी

"अंकल, आपने कहा था कि तीन किराएदार पहले भी रहे थे। उनके साथ क्या हुआ?"

शर्मा जी ने बताया, "पहला किराएदार एक हफ्ते में भाग गया। दूसरा दो हफ्ते रुका। तीसरा सबसे ज्यादा डरा था।"

"क्यों?"

"वो भी तुम्हारी तरह रात बारह के बाद बाथरूम गया था। उसने भी उस औरत को देखा। लेकिन उसके साथ कुछ और हुआ।"

"क्या?"

"उस औरत ने उसे पकड़ने की कोशिश की थी। उसकी गर्दन पर निशान पड़ गए थे। बड़ी मुश्किल से वो बच पाया।"

अनिल को लगा कि उसे भी कुछ ऐसा ही हो सकता था।

दूसरी रात का खतरा

अनिल ने तय किया कि वो दूसरे दिन ही फ्लैट छोड़ देगा। लेकिन उस रात उसे फिर से रुकना पड़ा।

शाम को उसने ध्यान रखा कि पानी कम पिए। लेकिन रात को फिर से तेज बुखार आ गया।

"नहीं! आज फिर वही होगा।" अनिल परेशान हो गया।

घड़ी में ग्यारह बजे थे। उसे फिर से बाथरूम जाना था।

अनिल ने हिम्मत जुटाई। "मैं ग्यारह बजे चला जाऊंगा। बारह बजने से पहले वापस आ जाऊंगा।"

वो तेजी से बाथरूम में गया और जल्दी से काम निपटाया। आईने में नहीं देखा। सीधे बाहर आ गया।

घड़ी में साढ़े ग्यारह बजे थे। "बच गया।" अनिल ने राहत की सांस ली।

लेकिन रात दो बजे फिर से उसे बाथरूम जाना पड़ा। इस बार कोई बचाव नहीं था।

आमना-सामना

अनिल धीरे-धीरे बाथरूम की तरफ बढ़ा। उसने लाइट जलाई लेकिन आईने में नहीं देखा।

काम निपटाकर जैसे ही वो बाहर निकलने वाला था, दरवाजा फिर बंद हो गया।

"नहीं! फिर से नहीं!" अनिल चिल्लाया।
सच्ची हॉरर स्टोरी: मुंबई के हॉन्टेड फ्लैट में अनिल का भूतनी से सामना

इस बार वो औरत सीधे उसके सामने खड़ी थी। आईने में नहीं, असली में।

"तुम फिर आ गए।" औरत ने कहा।

अनिल इतना डर गया था कि उसके मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी।

"मैंने कहा था न... यहां मत आना।" औरत गुस्से में थी।

अनिल ने हिम्मत जुटाई। "मुझे... मुझे मजबूरी थी। मैं... मैं बीमार हूं।"

औरत ने उसे गौर से देखा। फिर उसका चेहरा थोड़ा नरम हो गया।

"तुम डरते क्यों हो? मैं बुरी नहीं हूं।" औरत ने कहा।

औरत की कहानी

"तुम... तुम कौन हो?" अनिल ने कांपते हुए पूछा।

"मेरा नाम नीता था। मैं यहां रहती थी। मेरे पति ने मुझे मारा था।"

"मुझे पता है। शर्मा जी ने बताया।"

नीता की आंखों में आंसू आ गए। "मैं यहां फंस गई हूं। मैं जाना चाहती हूं लेकिन जा नहीं पाती।"

अनिल को उस पर दया आ गई। "तुम्हें क्या चाहिए?"

"मुझे सिर्फ शांति चाहिए। मेरी आत्मा को मुक्ति चाहिए।"

"मैं कैसे मदद कर सकता हूं?"

नीता ने कहा, "मेरा पति अभी भी जेल में है। वो पांच साल बाद बाहर आएगा। मैं चाहती हूं कि वो माफी मांगे।"

"लेकिन वो कैसे माफी मांगेगा?" अनिल ने पूछा।

"तुम्हें उससे मिलना होगा। उसे बताना होगा कि मैं अभी भी यहां हूं।"

जेल की मुलाकात

अगले हफ्ते अनिल ने जेल में नीता के पति राकेश से मिलने की अनुमति ली। राकेश अब पचास साल का हो गया था। उसके बाल सफेद हो चुके थे।

"तुम कौन हो?" राकेश ने पूछा।

"मैं उस फ्लैट में रहता हूं जहां आप रहते थे।"

राकेश का चेहरा सफेद पड़ गया। "वो फ्लैट? तुम वहां क्यों रहते हो?"

"मुझे आपसे एक बात कहनी है। नीता अभी भी वहां है।"

राकेश की आंखों में डर दिखा। "क्या मतलब?"

अनिल ने पूरी कहानी बताई।

राकेश रोने लगा। "मैंने बहुत बुरा किया। हर दिन मुझे पछतावा होता है। मैं उसे वापस नहीं ला सकता।"

"लेकिन तुम माफी मांग सकते हो।"

मुक्ति का रास्ता

अनिल ने एक योजना बनाई। उसने राकेश से एक पत्र लिखवाया जिसमें उसने नीता से माफी मांगी थी।

उस रात अनिल जानबूझकर बारह बजे के बाद बाथरूम में गया। नीता फिर से दिखी।

"मैं तुम्हारे लिए कुछ लाया हूं।" अनिल ने पत्र दिखाया।

नीता ने पत्र पढ़ा। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।

"उसने माफी मांगी।" नीता ने कहा।

"हां। अब तुम शांति से जा सकती हो।"अनिल ने कहा।

नीता ने मुस्कराते हुए कहा, "थैंक यू। तुमने मेरी मदद की।"

धीरे-धीरे नीता गायब होने लगी। एक सफेद रोशनी दिखी और फिर वो पूरी तरह गायब हो गई।

शांति का अनुभव

उस रात के बाद फ्लैट में कभी कोई अजीब आवाज नहीं आई। बाथरूम में कोई परेशानी नहीं हुई।

अनिल अब बिना डर के रह रहा था। उसने शर्मा जी को पूरी बात बताई।

"तुमने बहुत अच्छा काम किया बेटा। नीता की आत्मा को शांति मिल गई।" शर्मा जी ने कहा।

अनिल ने वो फ्लैट नहीं छोड़ा। अब वो वहां आराम से रहता था।

कहानी से सीख

नीता की कहानी हमें सिखाती है कि घरेलू हिंसा कितनी खतरनाक होती है। राकेश ने अपनी पत्नी को मारा और उसकी जान ले ली। उसे सजा तो मिली लेकिन नीता वापस नहीं आ सकती थी।

कभी-कभी जो लोग अन्याय का शिकार होते हैं, उनकी आत्माएं शांति नहीं पा पातीं। उन्हें सिर्फ न्याय और माफी चाहिए होती है।

अनिल ने नीता की मदद की। उसने डर को पार करके उस आत्मा को समझने की कोशिश की। और अंत में उसे शांति मिल गई।

अंतिम शब्द

आज भी जब लोग उस फ्लैट के बारे में पूछते हैं तो अनिल कहता है, "यह फ्लैट अब शापित नहीं है। यहां शांति है।"

नीता की आत्मा को मुक्ति मिल गई और अब वो किसी को परेशान नहीं करती।
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यह कहानी याद दिलाती है कि घरेलू हिंसा एक गंभीर अपराध है। अगर आपके आसपास कोई घरेलू हिंसा का शिकार है तो उसकी मदद करें। महिला हेल्पलाइन पर संपर्क करें। हर किसी को सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है।


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