बारिश की रात अकेले घर में: बारिश की रात भूतिया कहानी
बारिश की रात: जब मैं घर पर अकेला था
अकेले घर की डरावनी बारिश
आज मम्मी-पापा किसी रिश्तेदार की शादी में गए हुए थे। पूरा परिवार सुबह से तैयार होकर बाहर चला गया। मैं घर पर अकेला था। बाहर बादल घिरे हुए थे और सुबह से ही लगातार बारिश हो रही थी। बूंदों की टपकन और खिड़कियों से टकराकर गिरने की आवाज़ मेरे कानों में गूँज रही थी। हवा की हल्की सरसराहट और बरसाती पानी की आवाज़ ने घर का माहौल और भी भारी और सुनसान बना दिया था।
घर का हर कोना अचानक बड़ा और भयावह लगने लगा। बिजली भी चली गई थी, और कमरे में सिर्फ अंधेरा और बारिश की आवाज़ सुनाई दे रही थी। मन में डर बैठ गया। मैं अपने कमरे में बैठा सोच रहा था कि इतने सारे लोग बाहर हैं और मैं अकेला घर में हूँ। कभी-कभी ऐसा महसूस होता है कि घर का हर कोना, हर कोठरी, हर दरवाज़ा मेरे इर्द-गिर्द कुछ देख रहा है।
मैंने टीवी चालू करने की कोशिश की, पर वह काम नहीं कर रहा था। फिर मैंने मोबाइल की फ्लैश चालू की, ताकि घर में कुछ काम कर सकूँ। लेकिन जैसे ही मैंने फ्लैश ऑन किया, अजीब-सी ठंडी हवा का झोंका आया और दरवाज़े की खड़खड़ाहट सुनाई दी।
मैंने हिम्मत करके अपने कमरे के दरवाज़े की तरफ देखा। वह हल्का सा हिल रहा था, जैसे कोई उसे धीरे-धीरे हिला रहा हो। मैंने खुद से कहा, “शायद हवा ने दरवाज़ा हिला दिया होगा।” लेकिन मन में डर बैठा रहा।
रात धीरे-धीरे और भी गहरी होती जा रही थी। बारिश की आवाज़ के बीच अचानक ऊपर की मंजिल से धीमे-धीमे कदमों की आवाज़ सुनाई दी। मैं ठिठक गया। घर में और कोई नहीं था। मैंने अपने दिल की धड़कन को काबू में रखा और धीरे-धीरे ऊपर की तरफ बढ़ा।
ऊपर जाते ही मैंने देखा कि कमरे का दरवाज़ा थोड़ा खुला था। मैंने सोचा कि शायद हवा ने उसे हिला दिया होगा, पर जैसे ही मैंने कदम बढ़ाए, दरवाज़े की खड़खड़ाहट अचानक रुक गई। और फिर—एक धीमी खड़खड़ाहट हुई, जैसे कोई दरवाज़ा धीरे-धीरे खोल रहा हो। मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
मैं डर के मारे अपने कमरे की ओर भागा। कमरे में आते ही मैंने खिड़की की तरफ देखा। बारिश की बूंदों के बीच कुछ अजीब सा अँधेरा दिखाई दिया, जो मुझे घूर रहा था। मेरी सांसे रुक-सी गईं। मैंने खुद को संभाला और फर्श पर बिछी चादर उठाई, लेकिन वहां कुछ भी नहीं था। सब कुछ वैसा ही था, जैसे होना चाहिए।
बीच-बीच में मैं अपने मोबाइल की फ्लैश ऑन करता रहा, लेकिन हर बार जब मैं किसी कमरे में झाँकता, वह अँधेरा अचानक गायब हो जाता। मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था।
और फिर हुआ सबसे डरावना पल।
किचन की तरफ हल्की खड़खड़ाहट। मैंने महसूस किया कि कोई मेरे पीछे है। धीरे-धीरे मैंने किचन की तरफ कदम बढ़ाए। जैसे ही मैंने दरवाज़ा खोला, वहां सिर्फ बारिश की बूंदें और खाली कमरे की ठंडी हवा थी। लेकिन उस हवा में कुछ अजीब सी ठंडक थी, जो मेरी हड्डियों तक उतर रही थी।
रात के सबसे गहरे समय में मैंने महसूस किया कि घर का हर कोना, हर खिड़की का अँधेरा और हर दरवाज़ा मुझे घूर रहा है। कानों में फुसफुसाहट की आवाज़ आई—“तुम अकेले हो…”। मैं डर के मारे कांप रहा था।
रात के बीच में मैंने अपने कमरे के दरवाज़े से बाहर देखा। बारिश की तेज आवाज़ और अँधेरे की मिलीजुली चुप्पी ने पूरे घर को और भी डरावना बना दिया था। मैं धीरे-धीरे बाहर आया और देखा कि बरामदे में पानी जमा हो गया था। हर ओर अजीब-सी परछाईयाँ थीं। मैंने महसूस किया कि जैसे कोई मुझे दूर से देख रहा है।
मैंने हिम्मत करके अपने कमरे के बगल वाले कमरे में जाकर देखा। वहां कुछ भी नहीं था, लेकिन उस कमरे की हवा इतनी ठंडी थी कि मेरी त्वचा पर सिहरन दौड़ गई। मैंने महसूस किया कि घर में अकेले रहने का डर सिर्फ कल्पना नहीं है।
रात के सबसे भयानक समय में, मुझे ऐसा लगा कि कोई धीरे-धीरे सीढ़ियों से उतर रहा है। मैंने अपने कानों पर हाथ रखा और अपने दिल की धड़कन को महसूस किया। धीरे-धीरे मैं पीछे हटने लगा। घर के हर कोने में अजीब हलचल थी, और बार-बार ऐसा लगता कि कोई मेरी निगरानी कर रहा है।
लेकिन जैसे ही सुबह की हल्की रोशनी आई, बारिश रुक गई और हवा शांत हो गई। घर का वातावरण सामान्य लगने लगा। मैंने अपनी आँखें साफ की और देखा—किचन में कोई नहीं था, कोई अँधेरा नहीं था। सब कुछ सामान्य लग रहा था।
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अंतिम पल का रोमांच
सुबह होते ही मैंने मम्मी-पापा और रिश्तेदारों को फोन किया। उन्होंने हँसते हुए कहा कि वह वापस आ रहे हैं। मैंने उन्हें सारी रात की कहानी सुनाई। उन्होंने मुझे समझाया कि डर केवल हमारी कल्पना का हिस्सा हो सकता है, लेकिन रात में अकेले रहना और बारिश की तेज आवाज़ सच में डर पैदा कर सकती है।
कभी-कभी मैं सोचता हूँ—जो मैंने रात में महसूस किया, वह सच में कोई अजीब घटना थी या सिर्फ मेरा मन था? लेकिन एक बात पक्की है—अकेले घर में बारिश की रात का डर और वह रहस्य हमेशा याद रहेगा।
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निष्कर्ष
अकेले रहना और बारिश की रात का combination कभी-कभी हमारे मन को भ्रमित कर देता है। डर सिर्फ कल्पना नहीं, बल्कि वास्तविक भी हो सकता है। रात का अँधेरा, बारिश की आवाज़ और घर की चुप्पी मिलकर ऐसा माहौल बनाते हैं कि मन हर चीज़ को असली मान लेता है।
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क्या आप भी ऐसा महसूस करते हैं?
जब आप घर में अकेले होते हैं, क्या आपको भी कभी ऐसा लगता है कि कोई आपकी निगरानी कर रहा है या घर के कोनों में कुछ अजीब सा है? अगर हाँ, तो नीचे कमेंट में जरूर बताइए। और अगर आपको यह कहानी पसंद आई, तो इसे शेयर करना न भूलें। और सच बताइए इस कहानी ने आपका दिल दहला दिया ना ? क्योंकि ये कहानी नहीं मैने इसमें मेरी खुदकी फीलिंग बताई है।
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