रात का अंजान कॉल | हिंदी रहस्यमयी कहानी
रात 12 बजे का अजीब फोन कॉल
मेरा नाम अर्जुन है। मैं दिल्ली की एक IT कंपनी में काम करता हूँ। उस रात की याद आज भी मेरी रगों में सिहरन दौड़ा देती है। यह उस समय की बात है जब मैं अपने नए फ्लैट में अकेला रहने लगा था।
वो रात
27 अक्टूबर की रात थी। ऑफिस से देर हो गई थी, और जब तक मैं घर पहुँचा, घड़ी में 11:30 बज चुके थे। खाना खाकर मैं अपने कमरे में लेट गया और मोबाइल स्क्रॉल करने लगा। बाहर तेज़ हवा चल रही थी। खिड़की बार-बार हिल रही थी, और उसकी आवाज़ से ऐसा लग रहा था जैसे कोई दरवाज़ा खटखटा रहा हो।
ठीक 12 बजे मेरा फोन अचानक बज उठा। स्क्रीन पर सिर्फ़ लिखा था—Unknown Number।
पहले तो सोचा कि कोई गलत कॉल होगा, पर इतनी रात को कौन फोन करता है? जिज्ञासा में मैंने कॉल उठा लिया।
“हैलो?”
कुछ पल तक सन्नाटा रहा। फिर अचानक एक धीमी, काँपती हुई आवाज़ सुनाई दी—
“अर्जुन... मुझे बचाओ।”
मेरे पूरे शरीर में ठंडक दौड़ गई। आवाज़ किसी लड़की की थी, बेहद घबराई हुई।
“कौन हो तुम? कहाँ हो?” मैंने हकलाते हुए पूछा।
“मैं... मैं फँसी हुई हूँ। यहाँ बहुत अंधेरा है। कोई मुझे निकालो यहां से।”
उसकी आवाज़ में ऐसा दर्द था कि मेरी सांसें तेज़ हो गईं।
“पुलिस को कॉल करता हूँ,” मैंने कहा।
“नहीं!” उसने तुरंत रोक दिया, “पुलिस नहीं... सिर्फ़ तुम आ सकते हो। तुम्हें पता है मैं कहाँ हूँ।”
मैं और ज्यादा डर गया। “लेकिन मैं तुम्हें जानता भी नहीं। मेरा नाम तुम्हें कैसे पता?”
“अर्जुन... जल्दी आओ। Room number 204... वरना देर हो जाएगी।”
ये सुनते ही मेरा खून जम गया। Room 204 वही कमरा था जहाँ मैं एक साल पहले PG में रहता था।
अतीत की परछाई
मेरे दिमाग़ में पुरानी बातें ताज़ा हो गईं। उस कमरे में मैंने कई अजीब चीज़ें महसूस की थीं—दीवारों से खुरचने जैसी आवाज़ें, रात में किसी के कदमों की आहट, और सबसे डरावनी बात... बाथरूम के आईने में कभी-कभी किसी लड़की की परछाई दिखाई देती थी।
मेरे रूममेट रोहित ने एक बार बताया था कि उस कमरे में पहले एक लड़की रहती थी जिसका हादसे में निधन हो गया था। PG मालिक ने उसका नाम मीरा बताया था। हम दोनों ने इसे अफवाह मानकर नज़रअंदाज़ कर दिया था।
अब, सालों बाद... किसी अनजान नंबर से मुझे वही नाम लेकर बुलाया जा रहा था।
अचानक फोन फिर बजा। वही नंबर।
“हैलो अर्जुन... तुम अभी तक आए नहीं?” वही डरी हुई आवाज़।
मैंने हिम्मत जुटाई—“तुम कौन हो? तुम्हारा नाम क्या है?”
“मीरा... मेरा नाम मीरा है। मैं Room 204 में फँसी हूँ। सालों से... कोई मुझे सुनता नहीं, कोई मुझे देखता नहीं। लेकिन तुम... तुम मेरी आवाज़ सुन सकते हो।”
मेरे होंठ सूख गए। सच सामने था। वही मीरा... वही हादसा।
सच का सामना
“मीरा... तुम...?” मेरी आवाज़ काँप रही थी।
“हाँ अर्जुन। मैं मर चुकी हूँ... लेकिन मेरी आत्मा उस कमरे में कैद है। सालों से कोशिश कर रही थी कि कोई मेरी आवाज़ सुने। और अब... सिर्फ़ तुम हो।”
उसकी आवाज़ में डर नहीं था... बस गहरी तन्हाई थी।
मैंने धीरे से पूछा—“तुम चाहती क्या हो?”
“बस इतना कि कोई मुझसे बात करे। मैं बहुत अकेली हूँ। अगर तुम कभी-कभी मेरा फोन उठा लो... तो मुझे सुकून मिलेगा।”
अजीब दोस्ती
उस रात के बाद से हर दिन ठीक 12 बजे मीरा का फोन आने लगा। शुरू-शुरू में मुझे डर लगता था, लेकिन धीरे-धीरे समझ आया कि उसे सिर्फ़ किसी से बात करने की ज़रूरत थी। वो मुझे अपने अधूरे ख्वाब, अधूरी यादें सुनाती... और मैं उसे अपने दिनभर की बातें बताता।
एक महीने बाद मैंने हिम्मत करके उस पुराने PG का रुख किया। Room 204 के दरवाज़े के सामने खड़े होकर मैंने आवाज़ लगाई—“मीरा?”
अंदर से तुरंत उसकी खुशहाल आवाज़ आई—“अर्जुन! तुम आ गए!”
मैं अंदर नहीं गया। दरवाज़े के बाहर खड़े होकर ही उससे बातें करता रहा। मैंने वादा किया कि उसे कभी अकेला महसूस नहीं होने दूँगा।
अंत
अब छह महीने बीत चुके हैं। मीरा आज भी हर रात 12 बजे फोन करती है।
लोगों को शायद अजीब लगे... पर मैंने उसे अपना दोस्त मान लिया है। हाँ, मेरा दोस्त अब इंसान नहीं... बल्कि एक आत्मा है।
पर वो बुरी नहीं है। उसे सिर्फ़ किसी की ज़रूरत है। और मैंने सीखा है कि डरावनी चीज़ें हमेशा खतरनाक नहीं होतीं... कभी-कभी वो सिर्फ़ अकेली होती हैं।
अभी घड़ी में 12 बजने वाले हैं।
मैं इंतज़ार कर रहा हूँ—मीरा के फोन का।
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