Delivery Boy ki 13 भूतिया रातें: डरावनी कहानी
डिलीवरी बॉय की 13 भूतिया रातें: डरावनी कहानी
पहला दिन - नई नौकरी की शुरुआत
पैसे की तंगी के कारण बाईस साल के राज को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी, क्योंकि उसके पिता की नौकरी चली गई थी। काम की तलाश में भटकते हुए उसे एक फूड डिलीवरी कंपनी में रात की शिफ्ट का काम मिल गया।
कंपनी का नाम था "मिडनाइट एक्सप्रेस" और यहाँ काम सिर्फ रात दस बजे से सुबह छह बजे तक का था। पहले दिन राज के सुपरवाइजर संतोष ने उसे समझाया कि रात में ज्यादा पैसा मिलता है क्योंकि कम लोग इस शिफ्ट में काम करने को तैयार होते हैं।
"यार राज, एक बात याद रख," संतोष ने गंभीर आवाज़ में कहा, "रात में जहाँ भी डिलीवरी करने जाना हो, हमेशा सावधान रहना। कुछ भी अजीब लगे तो तुरंत वापस आ जाना।"
राज ने हंसते हुए पूछा, "क्यों भाई, क्या होगा रात में?"
संतोष की आंखों में एक अजीब सा डर दिखा। "कुछ नहीं यार, बस सावधान रहना।"
पहली रात - अंधेरे की शुरुआत
पहली रात राज को पांच ऑर्डर मिले। शुरू के चार ऑर्डर तो आम इलाकों में थे, लेकिन आखिरी ऑर्डर का एड्रेस था - "पुराना कब्रिस्तान के पास, गली नंबर तेरह, मकान नंबर तेरह।"
राज ने अपने फोन में पता देखा तो उसे अजीब लगा, 'कब्रिस्तान के पास भला कौन रहता है?' लेकिन पैसों की जरूरत इतनी ज़्यादा थी कि उसने यह बात नज़रअंदाज़ कर दी और चल पड़ा।
रात के बारह बज रहे थे जब राज उस इलाके में पहुंचा। सड़कों पर बिल्कुल सन्नाटा था। केवल उसकी बाइक की आवाज़ गूंज रही थी। कब्रिस्तान के पास पहुंचकर उसने गली नंबर तेरह ढूंढी।
गली बिल्कुल अंधेरी थी। केवल दूर से आने वाली एक मद्धम रोशनी दिख रही थी। राज ने बाइक की लाइट जलाई और धीरे-धीरे आगे बढ़ा। मकान नंबर तेरह एक पुराना सा मकान था जिसकी दीवारें काली हो चुकी थीं।
पहला डर - अजीब ग्राहक
राज ने दरवाजे पर दस्तक दी। "खाना आया है।"
अंदर से एक बुढ़िया की आवाज़ आई, "आ रहे हैं बेटा, जरा सब्र करो।"
लेकिन दस मिनट बाद भी कोई नहीं आया। राज ने फिर दस्तक दी। इस बार आवाज़ आई, "बस आ रहे हैं बेटा।"
अजीब बात यह थी कि यह आवाज़ अब किसी जवान लड़की की थी, बुढ़िया की नहीं। राज की पीठ में ठंडक दौड़ गई। उसने फिर दस्तक दी तो इस बार एक आदमी की आवाज़ आई, "आ रहा हूं भाई।"
रराज कांप उठा। 'इस घर में आखिर कितने लोग हैं? और हर बार अलग आदमी क्यों बोल रहा है ?
आखिर में दरवाजा खुला तो सामने एक सामान्य सा आदमी खड़ा था। उसने पैसे दिए और खाना ले लिया। राज जल्दी-जल्दी वहां से निकल गया।
दूसरी रात - आवाजों का रहस्य
दूसरी रात फिर उसी इलाके में ऑर्डर आया। इस बार एड्रेस था "कब्रिस्तान के सामने, लाल मकान।"
राज नहीं जाना चाहता था लेकिन मैनेजर ने कहा कि अगर ऑर्डर रद्द किया तो नौकरी से निकाल देंगे।
इस बार जब राज वहां पहुंचा तो देखा कि लाल मकान की सारी लाइटें जल रही हैं। लेकिन कोई आदमी दिखाई नहीं दे रहा।
दरवाजे पर दस्तक देने से पहले ही अंदर से आवाज़ आई, "राज, अंदर आ जा।"
राज का खून सूख गया। इस आदमी को उसका नाम कैसे मालूम है ? उसने कभी अपना नाम नहीं बताया था।
"मैं खाना दे रहा हूं। पैसे दो और खाना ले लो," राज ने डरते हुए कहा।
"अरे राज, डर क्यों रहा है? हम तो तुझे बहुत दिनों से जानते हैं। तेरे दादाजी भी यहीं आते थे।"
राज के दादाजी तो दस साल पहले मर गए थे। यह आदमी क्या बात कर रहा है?
दरवाजा खुला तो सामने वही आदमी था जो कल मिला था। उसने मुस्कराते हुए पैसे दिए। लेकिन जब राज ने उसकी आंखों में देखा तो लगा जैसे उसकी आंखों में कोई रोशनी नहीं है।
तीसरी रात - भयानक खोज
तीसरी रात राज ने संतोष से कहा, "यार, मुझे उस इलाके में नहीं जाना। कुछ अजीब बात है वहां।"
संतोष ने कहा, "यार, मैंने भी सुना है। लेकिन पैसे अच्छे मिलते हैं वहां से। तू सिर्फ खाना दे और वापस आ जा। ज्यादा बात मत कर।"
उस रात फिर उसी इलाके में ऑर्डर आया। इस बार एड्रेस था "कब्रिस्तान के अंदर, मजार के पास।"
राज की सांस अटक गई। कब्रिस्तान के अंदर कौन रहता है? उसने मैनेजर को फोन किया तो उसने कहा, "यार, ग्राहक ने कहा है कि वो कब्रिस्तान के गेट पर मिलेगा।"
कब्रिस्तान के गेट पर पहुँचने पर राज ने देखा कि वहाँ कोई नहीं था। चारों तरफ़ सिर्फ़ पुराने पेड़ों की परछाइयाँ ही दिख रही थीं। उसने अपना फ़ोन निकाला और ग्राहक को कॉल किया।
"हैलो, मैं गेट पर हूं। आप कहां हैं?" राज ने पूछा।
फोन की दूसरी तरफ से एक अजीब सी आवाज़ आई, "अंदर आ जा बेटा, मैं मजार के पास हूं।"
राज के होश उड़ गए। कब्रिस्तान के अंदर वो अकेला कैसे जाए?
चौथी रात - सच्चाई का आभास
राज ने इंटरनेट पर उस इलाके के बारे में पता लगाया। उसे पता चला कि यह कब्रिस्तान सौ साल पुराना है और यहां पर कई बार अजीब घटनाएं हुई हैं। कुछ लोगों ने बताया कि यहां भटकती आत्माएं हैं जो रात में लोगों को परेशान करती हैं।
फिर भी राज को काम करना था। उसके घर में पैसों की बहुत जरूरत थी।
चौथी रात का ऑर्डर आया "पुराना हवेली, कब्रिस्तान के पीछे।"
राज ने पहले कभी इस हवेली के बारे में नहीं सुना था। जब वो वहां पहुंचा तो देखा कि एक बहुत बड़ी और पुरानी हवेली है जिसकी दीवारों पर काई लग चुकी है। हवेली के अंदर से मद्धम रोशनी आ रही थी।
दरवाजे पर दस्तक देते ही अंदर से कई आवाजें एक साथ आईं:
"आ गया खाना?"
"बहुत भूख लगी है।"
"जल्दी अंदर आ।"
"हमें इंतजार से मत तड़पा।"
राज को ऐसा लगा जैसे अंदर दस-बीस लोग मौजूद हैं, लेकिन दरवाज़ा खुलने पर सिर्फ़ एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया।
पांचवी रात - रहस्य गहराता है
पांचवी रात राज ने देखा कि उसके सभी ऑर्डर उसी इलाके से आ रहे हैं। अजीब बात यह थी कि हर ऑर्डर अलग-अलग नाम से था लेकिन फोन नंबर सभी का एक ही था।
पहला ऑर्डर - मुकेश शर्मा
दूसरा ऑर्डर - राधा देवी
तीसरा ऑर्डर - करीम खान
चौथा ऑर्डर - जॉन स्मिथ
पांचवा ऑर्डर - रमेश गुप्ता
सभी के फोन नंबर एक ही - ९९९९९९९९९९
राज ने गौर किया कि यह फोन नंबर भी अजीब है। नौ अंक के नंबर नहीं होते। भारत में दस अंक के नंबर होते हैं।
जब राज पहले ऑर्डर पर गया तो वो मुकेश शर्मा मिला। वही आदमी जो हर रात मिलता था।
दूसरे ऑर्डर पर वो राधा देवी बनकर आया। वही चेहरा, वही आवाज़, लेकिन औरत के कपड़े पहने हुए।
तीसरे ऑर्डर पर वो करीम खान बनकर आया। वही आदमी, लेकिन इस बार दाढ़ी लगाए हुए।
राज की समझ में आ गया कि यह कोई सामान्य इंसान नहीं है।
छठी रात - भयानक सच
छठी रात राज ने हिम्मत करके उस आदमी से पूछा, "आप कौन हैं? आपको मेरा नाम कैसे पता है?"
आदमी ने मुस्कराते हुए कहा, "राज, तू बहुत सवाल पूछता है। क्या तुझे पता नहीं कि तेरे दादाजी भी यहीं काम करते थे?"
"मेरे दादाजी दुकान चलाते थे, डिलीवरी का काम नहीं करते थे।" राज ने कहा।
"अरे हां, दुकान भी चलाते थे। लेकिन रात में हमारे लिए खाना भी लाते थे। बड़े अच्छे इंसान थे तेरे दादाजी।"
राज के दादाजी तो दस साल पहले मर गए थे। यह आदमी उनके बारे में कैसे जानता है? और यह "हमारे लिए" क्यों कह रहा है?
"आप यहां कब से रहते हैं?" राज ने पूछा।
"यहां? बहुत पुराना रिश्ता है हमारा इस जगह से। तू पूछ क्यों रहा है? तेरा काम है खाना देना, दे और चला जा।"
इस बार आदमी की आवाज़ में एक अजीब सी धमकी थी।
सातवीं रात - खतरनाक मुठभेड़
सातवीं रात का ऑर्डर सबसे अजीब था। ग्राहक ने केवल एक चीज़ मंगवाई थी - खुन।
राज ने रेस्टोरेंट वाले से पूछा तो उसने कहा, "यार, यह कोई सब्जी का नाम होगा। तू बस जो भी दिया जाए, पहुंचा दे।"
जब राज ने पैकेट खोलकर देखा तो अंदर कच्चा मांस था जिसमें से खून टपक रहा था। उसका पेट खराब हो गया।
जब वो उस आदमी के पास पहुंचा तो देखा कि वो पहले से ही दरवाजे के बाहर खड़ा है और उसकी आंखें लाल हो रही हैं।
"आह, आ गया मेरा खाना।" आदमी ने पैकेट छीनकर तुरंत खोला और कच्चे मांस को हाथों से खाने लगा। खून उसके मुंह से टपक रहा था।
राज देखता रह गया। यह कोई इंसान नहीं था।
आठवीं रात - भागने की कोशिश
आठवीं रात राज ने अपने मैनेजर से कहा कि वो इस इलाके में काम नहीं करना चाहता। मैनेजर ने कहा, "यार, उस इलाके से हमारी अच्छी कमाई होती है। वो ग्राहक हमेशा दोगुने पैसे देता है।"
"कौन सा ग्राहक? वहां तो एक ही आदमी रहता है।" राज ने कहा।
"एक आदमी? यार तेरे पास तो रोज पांच-छह अलग ऑर्डर जाते हैं उस इलाके में।"
राज को एहसास हुआ कि सिर्फ वही इस सच को देख पा रहा है। बाकी लोगों को पता नहीं है।
उस रात जब राज ने इलाके में जाने से मना कर दिया तो मैनेजर ने धमकी दी, "अगर काम नहीं करना तो नौकरी छोड़ दे।"
राज के पास कोई चारा नहीं था। घर में पैसों की सख्त जरूरत थी।
नौंवी रात - भयानक धमकी
नौंवी रात जब राज उस इलाके में गया तो वो आदमी पहले से ही रास्ते में खड़ा था।
"राज, तू कल क्यों नहीं आया था?" उसने पूछा।
"मैं बीमार था।" राज ने झूठ बोला।
"झूठ मत बोल। तूने अपने मैनेजर से कहा था कि तू यहां नहीं आना चाहता।"
राज के होश उड़ गए। इसे कैसे पता चला?
"राज, तेरे दादाजी कभी हमसे झूठ नहीं बोलते थे। और हमेशा वक्त पर आते थे। तू भी वैसा ही बन।"
"मैं अपने दादाजी के बारे में आपसे बात नहीं करना चाहता।" राज ने गुस्से में कहा।
अचानक उस आदमी का चेहरा बदल गया। उसकी आंखें एकदम लाल हो गईं और मुंह से अजीब सी आवाज़ निकली।
"राज, तू हमारी बेइज्जती कर रहा है। यह ठीक नहीं है। तेरे दादाजी भी हमारी इज्जत करते थे।"
दसवीं रात - सबसे डरावनी रात
दसवीं रात राज को दस ऑर्डर मिले उसी इलाके के। सभी अलग-अलग नाम से लेकिन फोन नंबर एक ही था। और सबसे अजीब बात यह थी कि सारे ऑर्डर में सिर्फ कच्चा मांस और खून था।
राज डर गया लेकिन पैसों की मजबूरी के कारण गया।
जब वो पहुंचा तो देखा कि उस आदमी के साथ नौ और लोग खड़े हैं। सभी का चेहरा एक जैसा लग रहा था। सभी की आंखें लाल थीं।
"राज, आज तेरी परीक्षा है।" उस आदमी ने कहा।
"क्या मतलब?" राज ने कांपते हुए पूछा।
"आज तुझे हमारे साथ खाना खाना है। फिर तू हमेशा के लिए हमारा हो जाएगा। जैसे तेरे दादाजी हमारे हो गए थे।"
राज को एहसास हुआ कि उसके दादाजी की मौत कोई सामान्य मौत नहीं थी। वे भी इन्हीं चीजों के चक्कर में फंस गए थे।
"मैं नहीं खाऊंगा।" राज ने कहा और भागने की कोशिश की।
लेकिन उन दस लोगों ने उसे घेर लिया।
ग्यारहवीं रात - अंतिम लड़ाई
राज को समझ आ गया कि यह कोई सामान्य मामला नहीं है। वो भूत-प्रेत या कोई अलौकिक शक्ति से निपट रहा है।
उसने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और हनुमान चालीसा चलाया। अचानक वे सभी लोग चिल्लाने लगे और पीछे हट गए।
"राज, तू बहुत चालाक है।" उस आदमी ने कहा। "लेकिन तू हमसे बच नहीं सकता। तेरे दादाजी भी हमसे बचने की कोशिश करते थे। आज वे कहां हैं?"
राज को गुस्सा आ गया। "मेरे दादाजी के बारे में कुछ मत कहो।"
"तेरे दादाजी अब हमारे साथ हैं। वे भी हमारी तरह बन गए हैं। तू चाहे तो उनसे मिल सकता है।"
अचानक भीड़ में से एक बूढ़ा आदमी आगे आया। राज की सांस अटक गई। यह उसके दादाजी थे।
"राज बेटा, इधर आ जा। अब तुझे हमारे साथ रहना है।" उसके दादाजी ने कहा लेकिन उनकी आवाज़ में वो प्यार नहीं था जो पहले होता था।
बारहवीं रात - सच्चाई का पता
राज को समझ आ गया कि यह सब झूठ है। उसके दादाजी की आत्मा को इन बुरी शक्तियों ने कब्जे में कर लिया है।
उसने हिम्मत जुटाई और बोला, "दादाजी, आप मुझे पहचान रहे हैं? मैं राज हूं, आपका पोता।"
"हां बेटा, मैं तुझे पहचान रहा हूं। इसलिए तो कह रहा हूं कि हमारे साथ आ जा। यहां बहुत अच्छा है।"
"दादाजी, आपने मुझे सिखाया था कि बुराई से हमेशा लड़ना चाहिए। आप मुझे बुराई के साथ जाने को कैसे कह रहे हैं?"
अचानक उसके दादाजी का चेहरा बदल गया। उनकी आंखों में आंसू आ गए।
"राज बेटा, मैं मजबूर हूं। ये लोग मुझे जाने नहीं देते। तू यहां से भाग जा। वापस मत आना।"
यह कहकर उसके दादाजी अचानक गायब हो गए।
तेरहवीं रात - आखिरी मुकाबला
तेरहवीं रात राज को आखिरी बार उस इलाके में जाना पड़ा। उसने पहले से तैयारी कर ली थी। उसके पास हनुमान चालीसा, गंगाजल और एक छोटी सी तलवार थी जो उसके दादाजी की थी।
जब वो वहां पहुंचा तो सभी दुष्ट आत्माएं उसका इंतजार कर रही थीं।
"राज, आज तेरा आखिरी दिन है। या तो तू हमारे साथ आ जा या फिर हमेशा के लिए यहीं रह जा।"
राज ने तलवार निकाली और हनुमान चालीसा पढ़ना शुरू किया। अचानक उसके चारों तरफ एक सुनहरी रोशनी फैल गई।
सभी दुष्ट आत्माएं चिल्लाने लगीं। "यह क्या कर रहा है तू?"
"मैं वही कर रहा हूं जो मेरे दादाजी ने मुझे सिखाया था। बुराई से लड़ना।"
अचानक उसके दादाजी फिर दिखे। इस बार उनका चेहरा शांत था।
"बेटा राज, तूने मुझे मुक्ति दिला दी। अब मैं आराम से जा सकता हूं। तू हमेशा अच्छाई के रास्ते पर चलना।"
यह कहकर उसके दादाजी एक सुनहरी रोशनी में गायब हो गए।
समाप्ति - नई शुरुआत
राज ने उसी रात अपनी नौकरी छोड़ दी। उसने फैसला किया कि वो दिन में कोई और काम करेगा लेकिन रात में इस तरह के काम नहीं करेगा।
कुछ दिनों बाद उसे एक दुकान में दिन की नौकरी मिल गई। हालांकि पैसे कम थे लेकिन उसकी जान सुरक्षित थी।
एक दिन उसने देखा कि "मिडनाइट एक्सप्रेस" कंपनी बंद हो गई है। पता चला कि वहां काम करने वाले तीन और लड़के भी गायब हो गए हैं।
राज को लगा कि उसने सही फैसला लिया था। पैसा जरूरी है लेकिन जान से ज्यादा जरूरी नहीं। कुछ काम ऐसे होते हैं जिनसे बचना ही बेहतर होता है।
आज भी राज जब उस इलाके से गुजरता है तो वहां सन्नाटा दिखता है। कब्रिस्तान के पास की सभी दुकानें बंद हो चुकी हैं। लेकिन कभी-कभी रात में वहां से अजीब आवाजें आती हैं।
राज ने अपने घर में हनुमान जी की तस्वीर लगवाई है और हर रोज प्रार्थना करता है। उसे पता है कि इस दुनिया में अच्छाई और बुराई दोनों है। लेकिन अच्छाई हमेशा बुराई पर जीत जाती है बशर्ते हम हिम्मत रखें।
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