शिमला की छुपी राज़दार रातें - शिमला की भूतिया कहानी
शिमला की छुपी राज़दार रातें - शिमला की भूतिया कहानी

शिमला की उन तीन रातों की यादें आज भी मेरे ज़हन को झकझोर देती हैं। रहस्यमयी आवाज़ें, अनजानी घटनाएँ और सबसे अजीब – वो लड़की, जिसे देखने वाला मैं अकेला था।"
यह मेरी ज़िंदगी का ऐसा किस्सा है जिसे याद करके आज भी मेरी रूह काँप जाती है। कुछ साल पहले मैं गर्मियों की छुट्टियों में अकेले शिमला घूमने गया था। बर्फ़ से ढकी वादियाँ, हरे-भरे पहाड़ और ठंडी हवाएँ मुझे अपनी ओर खींच रही थीं। मैं बेहद उत्साहित था, लेकिन मुझे कहाँ पता था कि यह सफ़र मेरे लिए एक डरावनी याद बन जाएगा।
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पहला दिन – पुरानी हवेली का चुनाव
शिमला पहुँचने के बाद मैंने शहर के बीच स्थित होटल में रुकने के बजाय थोड़ी दूर एक पुरानी हवेली में ठहरने का निश्चय किया। उस हवेली को देखकर मेरे मन में अजीब-सी जिज्ञासा जागी। लकड़ी के पुराने दरवाज़े, दीवारों पर लगी धूल और चारों ओर फैला सन्नाटा… सब कुछ रहस्यमय लग रहा था।
वहाँ का चौकीदार – एक बूढ़ा आदमी – मुझे देखकर बोला,
“साहब, यहाँ लोग ज़्यादा दिन नहीं टिक पाते। आपको डर तो नहीं लगेगा?”
मैंने हल्की हँसी में कहा, “मुझे तो शांति चाहिए। डर जैसी कोई बात नहीं।”
मगर मुझे ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि आने वाली रातें मेरी सोच बदल देंगी।
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पहली रात – रहस्यमयी आहटें
पहली रात सब ठीक रहा। लेकिन रात के लगभग एक बजे अचानक मेरी नींद टूटी। ऐसा लगा जैसे ऊपर वाली मंज़िल से कोई भारी चीज़ घसीट रहा हो।
मैंने खिड़की खोली, तो बाहर सिर्फ़ घना कोहरा और सर्द हवा थी। चारों ओर पसरा सन्नाटा देखकर, मुझे लगा कि यह सिर्फ़ मेरा भ्रम है।
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दूसरी रात – अजीब परछाइयाँ
अगली रात मैं कमरे में अकेला बैठा किताब पढ़ रहा था। तभी अचानक मुझे लगा जैसे कमरे के कोने में कोई खड़ा है। डरते-डरते मैंने लाइट जलाई, लेकिन वहाँ कुछ नहीं था। बस दीवार पर हिलती-डुलती परछाइयाँ नज़र आ रही थीं।
अचानक खिड़की अपने आप खुल गई और ठंडी हवा कमरे में भर गई। हवा के साथ एक धीमी-सी हँसी सुनाई दी – जैसे कोई लड़की धीरे से हँस रही हो।
मैं काँप उठा। मैंने सोचा शायद पहाड़ों की गूँज है, लेकिन दिल मानने को तैयार नहीं था। डर अब भीतर तक उतर चुका था।
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तीसरी रात – वो लड़की जिसे सिर्फ मैंने देखा
तीसरी रात, मैंने अपने डर पर काबू पाने का फ़ैसला किया। मैंने ठान लिया कि इस बार जो भी आवाज़ सुनाई देगी, मैं उसका सामना करूँगा। और ठीक आधी रात को, फिर से वही कदमों की आहट ने सन्नाटा तोड़ दिया।
मैंने दरवाज़ा खोला। सीढ़ियों के अंत में मुझे एक लड़की दिखाई दी। उसके लंबे खुले बाल थे, सफ़ेद कपड़े पहने हुए थे और उसकी आँखों में गहरा दुःख साफ झलक रहा था।
वो मेरी ओर देख रही थी जैसे कुछ कहना चाहती हो। मैंने हिम्मत जुटाकर पूछा –
“तुम कौन हो?”
उसने कुछ नहीं कहा। बस धीरे-धीरे सीढ़ियों से नीचे उतर गई और धुंध में गायब हो गई।
डर से मेरी आवाज़ नहीं निकल रही थी। मैं भागा और तुरंत चौकीदार के पास पहुंचा, उसे एक-एक बात बताई। उसने मेरी बात सुनकर एक गहरी साँस ली और कहा –
“साहब, आप अकेले नहीं हैं जिन्होंने उसे देखा। कई साल पहले यहाँ एक अंग्रेज़ अफ़सर की बेटी रहती थी। कहा जाता है कि वो अचानक एक रात गायब हो गई थी और फिर कभी नहीं मिली। लोग कहते हैं कि उसकी आत्मा अब भी इसी हवेली में भटकती है।”
यह सुनकर मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
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आख़िरी सुबह – एक अधूरी कहानी
सुबह होते ही मैंने बिना देर किए हवेली छोड़ दी। मेरा मन वहाँ एक पल भी और रुकने का नहीं था।
शिमला की ठंडी हवाएं और खूबसूरत वादियां आज भी मुझे याद आती हैं, लेकिन उनके साथ उन तीन भयानक रातों का साया भी मेरे दिलो-दिमाग से नहीं मिटा है।
उस लड़की की आँखों में जो दर्द मैंने देखा था, वो आज तक मेरे दिल में कैद है। क्या वो सचमुच आत्मा थी? या फिर मेरे दिमाग का भ्रम? मैं नहीं जानता।
लेकिन एक बात तय है – शिमला की वो छुपी राज़दार रातें मेरे जीवन की सबसे भयावह याद बन चुकी हैं।
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