गलत नंबर से मिला प्यार - सच्ची प्रेम कहानी
गलत नंबर से मिला प्यार - सच्ची प्रेम कहानी
रात के 12 बजे प्रिया का फोन बजा - "पापा, मैं अस्पताल में हूं, जल्दी आओ!" लेकिन यह उसका पापा नहीं था। कोई अनजान बुजुर्ग रो रहा था। प्रिया ने जो फैसला लिया, उसे पता नहीं था कि यह गलत नंबर उसकी जिंदगी का सबसे सही मोड़ बनने वाला है। अस्पताल पहुंचकर जो हुआ... क्या एक गलती से मिल सकता है सच्चा प्यार?
रात का अजीब फोन
प्रिया अपने दिल्ली के एक बेडरूम फ्लैट में बैठी अपनी मार्केटिंग कंपनी का काम पूरा कर रही थी। रात के दस बज चुके थे जब अचानक उसका फोन बजा। नंबर अनजान था लेकिन दिल्ली का ही लग रहा था।
"हैलो?" प्रिया ने फोन उठाया।
दूसरी तरफ से एक बुजुर्ग आदमी की कांपती आवाज आई, "बेटा प्रिया, मैं अस्पताल में हूं। मेरी तबीयत बहुत खराब है। तुम जल्दी आ सकती हो?"
प्रिया को समझ नहीं आया। यह आवाज जानी-पहचानी नहीं थी।
"अंकल, आप कौन हैं? मुझे लगता है आपने गलत नंबर लगाया है।" प्रिया ने नरमी से कहा।
"क्या मतलब गलत नंबर? तुम प्रिया नहीं हो? मेरी बेटी प्रिया?" आवाज में घबराहट साफ झलक रही थी।
अनजान पिता की पुकार
प्रिया का दिल पिघल गया। बूढ़े आदमी की आवाज में इतना दर्द था कि वो फोन काट नहीं पाई।
"अंकल, मैं प्रिया हूं लेकिन शायद आपकी बेटी कोई और प्रिया है। आप किस अस्पताल में हैं? आपकी क्या समस्या है?" प्रिया ने चिंता से पूछा।
"मैं गंगाराम अस्पताल में हूं बेटा। सीने में दर्द हो रहा था। अकेले आया हूं। मेरी बेटी का नंबर था मेरे पास लेकिन लगता है गलत नंबर सेव हो गया।" बुजुर्ग ने रोते हुए बताया।
"आपकी बेटी का सही नंबर याद है आपको?" प्रिया ने पूछा।
"नहीं बेटा, मुझे नंबर याद नहीं रहते। यह फोन भी नया है। सब कुछ इसमें सेव करके रखा था।"
प्रिया के मन में द्वंद्व था। यह अनजान व्यक्ति था लेकिन मुसीबत में था।
फैसले की घड़ी
"अंकल, आप परेशान मत होइए। मैं अभी आती हूं।" प्रिया ने बिना सोचे कह दिया।
"लेकिन बेटा, तुम कौन हो? तुम क्यों आओगी?" बुजुर्ग ने हैरानी से पूछा।
"अंकल, भले ही मैं आपकी बेटी नहीं हूं लेकिन मैं भी किसी की बेटी हूं। अगर मेरे पापा अकेले अस्पताल में होते तो मैं भी चाहती कि कोई उनके पास होता।"
प्रिया ने तुरंत अपना काम बंद किया और गंगाराम अस्पताल के लिए निकल गई। टैक्सी में बैठते समय उसे अहसास हुआ कि वो एक बिल्कुल अनजान व्यक्ति से मिलने जा रही है।
पहली मुलाकात
अस्पताल पहुंचकर प्रिया ने रिसेप्शन से पूछा। उन्होंने बताया कि राजेश कुमार नाम का एक मरीज आपातकाल में भर्ती है।
जब प्रिया वार्ड में पहुंची तो देखा कि एक साठ साल का व्यक्ति बिस्तर पर अकेला पड़ा है। उसकी आंखों में चिंता और अकेलेपन का भाव था।
"अंकल?" प्रिया ने धीरे से आवाज लगाई।
राजेश कुमार ने आंखें खोलीं तो सामने एक खूबसूरत लड़की को देखकर हैरान रह गया।
"तुम कौन हो बेटी?" उन्होंने पूछा।
"मैं प्रिया हूं अंकल। आपने मुझे फोन किया था।" प्रिया ने मुस्कराते हुए कहा।
"लेकिन तुम तो मेरी बेटी नहीं हो। फिर क्यों आई?"
प्रिया ने कुर्सी खींचकर उनके पास बैठते हुए कहा, "अंकल, गलत नंबर से कभी-कभी सही इंसान मिल जाता है।"
अस्पताल की रात
राजेश कुमार की आंखों में आंसू आ गए। वो प्रिया को अपनी कहानी बताने लगे।
"मैं रिटायर्ड टीचर हूं बेटी। मेरी पत्नी दो साल पहले गुजर गई। एक ही बेटी है प्रिया - तुम्हारे नाम की। वो अमेरिका में जॉब करती है। शादी हो गई है उसकी। साल में एक बार आती है।"
"अंकल, आपको दिल का दौरा तो नहीं आया न?" प्रिया ने चिंता से पूछा।
"नहीं बेटी, सीने में दर्द था। डॉक्टर ने कहा है कि एसिडिटी और तनाव की वजह से है। कल सुबह घर जा सकूंगा।"
प्रिया ने राहत की सांस ली। वो पूरी रात अस्पताल में राजेश अंकल के साथ रही। नर्स से दवाइयों के बारे में पूछा। खाना मंगवाया। दोनों ने रात भर बातें कीं।
दूसरे दिन की शुरुआत
सुबह डॉक्टर ने राजेश अंकल को डिस्चार्ज कर दिया। प्रिया ने उनकी दवाइयां लीं और उन्हें घर छोड़ने गई।
रास्ते में राजेश अंकल ने पूछा, "बेटी प्रिया, तुमने मेरी इतनी मदद क्यों की? मैं तो तुम्हारा कुछ लगता भी नहीं हूं।
"अंकल, मेरे पापा भी मुझसे दूर रहते हैं। मैं जानती हूं अकेलेपन का मतलब क्या होता है।" प्रिया ने जवाब दिया।
राजेश अंकल का घर पुरानी दिल्ली में था। छोटा लेकिन साफ-सुथरा। दीवारों पर पत्नी और बेटी की तस्वीरें लगी थीं।
"यह है मेरी बेटी प्रिया।" अंकल ने एक तस्वीर दिखाई।
प्रिया ने देखा तो हैरान रह गई। तस्वीर में लड़की बिल्कुल उसी की तरह दिख रही थी।
अजीब इत्तेफाक
"अंकल, यह तो मेरी तरह ही दिख रही है!" प्रिया ने आश्चर्य से कहा।
"हां बेटी, इसीलिए तो मैं कल रात घबरा गया था। तुम्हारी आवाज भी बिल्कुल इसी की तरह है।" राजेश अंकल ने कहा।
प्रिया को अहसास हुआ कि यह कोई साधारण इत्तेफाक नहीं था। शायद भगवान ने उसे इस अकेले बुजुर्ग की मदद के लिए भेजा था।
"अंकल, आप अकेले यहां कैसे रहते हैं? कोई मदद करने वाला है?" प्रिया ने पूछा।
"पास ही एक काम करने वाली बाई आती है सफाई के लिए। खाना मैं खुद बना लेता हूं। लेकिन बीमार पड़ जाऊं तो कोई नहीं है।"
प्रिया का दिल भर आया। उसने फैसला किया कि वो राजेश अंकल का ख्याल रखेगी।
नई दोस्ती की शुरुआत
अगले दिन प्रिया ने राजेश अंकल को फोन किया। "अंकल, तबीयत कैसी है?"
"बहुत अच्छी बेटी। तुम्हारी वजह से।" अंकल की आवाज में खुशी थी।
"अंकल, आज शाम मैं आपसे मिलने आऊंगी। आपके साथ खाना खाऊंगी।"
"अरे बेटी, इतनी तकलीफ क्यों कर रही हो?"
"कोई तकलीफ नहीं है अंकल। मैं भी अकेली रहती हूं। साथ में खाना खाने से अच्छा लगेगा।"
उस शाम से प्रिया का राजेश अंकल के घर आना-जाना शुरू हो गया। वो हफ्ते में दो-तीन बार मिलने जाती। कभी खाना बनाकर ले जाती, कभी साथ बैठकर खाना बनाती।
तीन महीने बाद का बदलाव
तीन महीने में राजेश अंकल की जिंदगी बदल गई। वो खुश रहने लगे। प्रिया के साथ मार्केट जाते, पार्क में घूमने जाते। पड़ोसी भी खुश थे कि अंकल अकेले नहीं हैं।
एक दिन प्रिया के ऑफिस में एक नया मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव ज्वाइन हुआ - अभिषेक। वो दिल्ली का ही था और बहुत अच्छा काम करता था।
अभिषेक को प्रिया पसंद आई लेकिन वो शर्मीला था। कई दिनों तक वो प्रिया से बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।
आखिर एक दिन अभिषेक ने प्रिया से कॉफी पर चलने को कहा।
"प्रिया, तुम बहुत अच्छी लड़की हो। मैं तुम्हें जानना चाहता हूं।" अभिषेक ने कहा।
प्रिया ने मुस्कराते हुए अपनी कहानी बताई। राजेश अंकल के बारे में बताया।
अभिषेक का सरप्राइज
"वाह प्रिया! तुमने बहुत अच्छा काम किया है। क्या मैं भी अंकल से मिल सकता हूं?" अभिषेक ने कहा।
अगले हफ्ते प्रिया अभिषेक को लेकर राजेश अंकल के घर गई।
"अंकल, ये अभिषेक है। मेरे ऑफिस में काम करता है।" प्रिया ने परिचय कराया।
राजेश अंकल ने अभिषेक को देखकर खुशी जताई। "बहुत अच्छा लड़का लगता है बेटी।"
अभिषेक और राजेश अंकल में तुरंत दोस्ती हो गई। अभिषेक भी अंकल से मिलने आने लगा।
एक दिन अभिषेक ने अकेले में राजेश अंकल से कहा, "अंकल, मुझे प्रिया से प्यार हो गया है। लेकिन मैं उससे कैसे कहूं?"
अंकल की सलाह
राजेश अंकल मुस्कराए। "बेटा, प्रिया बहुत अच्छी लड़की है। लेकिन उससे सीधे प्यार की बात मत करना। पहले अच्छा दोस्त बनो।"
"लेकिन अंकल, मैं कैसे समझूं कि उसे भी मुझसे कुछ लगाव है?" अभिषेक ने पूछा।
"बेटा, प्रिया एक दिन मुझसे कह रही थी कि तुम बहुत अच्छे हो। उसने कहा था कि तुम्हारी तरह का लड़का मिले तो शादी कर ले।" राजेश अंकल ने मुस्कराते हुए बताया।
अभिषेक की खुशी का ठिकाना नहीं था।
अगले हफ्ते अभिषेक ने प्रिया को एक सरप्राइज देने का प्लान बनाया। उसने राजेश अंकल से कहा कि वो प्रिया को बुलाए।
प्यार का इजहार
जब प्रिया राजेश अंकल के घर पहुंची तो देखा कि पूरा घर फूलों से सजा है। टेबल पर मोमबत्तियां जल रही हैं।
"अंकल, यह सब क्या है?" प्रिया ने हैरानी से पूछा।
तभी अभिषेक अंदर आया। उसके हाथ में गुलाब के फूल थे।
"प्रिया, मुझे तुमसे कुछ कहना है।" अभिषेक ने घबराते हुए कहा।
"क्या कहना है?" प्रिया ने शरमाते हुए पूछा।
"मुझे तुमसे प्यार हो गया है। क्या तुम मुझसे शादी करोगी?"
प्रिया के चेहरे पर मुस्कान आ गई। वो भी अभिषेक को पसंद करने लगी थी।
"हां अभिषेक। लेकिन एक शर्त है।" प्रिया ने कहा।
"कैसी शर्त?" अभिषेक ने पूछा।
"राजेश अंकल हमारे साथ रहेंगे। वो अकेले नहीं रह सकते।"
राजेश अंकल की आंखों में आंसू आ गए। "बेटी, मैं तुम्हारी नई जिंदगी में परेशानी नहीं बनना चाहता।"
"अंकल, आप परेशानी नहीं, हमारे परिवार का हिस्सा हैं।" अभिषेक ने कहा।
छह महीने बाद की शादी
छह महीने बाद प्रिया और अभिषेक की शादी हुई। राजेश अंकल ने प्रिया के पिता की तरह सभी रस्में निभाईं।
शादी में प्रिया के माता-पिता भी आए थे लेकिन उन्होंने देखा कि प्रिया राजेश अंकल को ज्यादा महत्व दे रही है।
"बेटी, यह अंकल कौन है?" प्रिया की मां ने पूछा।
प्रिया ने पूरी कहानी बताई। सुनकर उसके माता-पिता की आंखें भर आईं।
"हमें गर्व है बेटी कि तूने इतना अच्छा काम किया।" प्रिया के पापा ने कहा।
शादी के दिन राजेश अंकल ने प्रिया से कहा, "बेटी, उस दिन मैंने गलत नंबर लगाया था। लेकिन मुझे सही इंसान मिल गया।"
नई जिंदगी की शुरुआत
शादी के बाद प्रिया और अभिषेक ने एक बड़ा घर लिया जहां राजेश अंकल के लिए अलग कमरा था। तीनों मिलकर खुशी से रहने लगे।
राजेश अंकल अब अकेले नहीं थे। उनके पास दो बच्चे थे जो उनकी देखभाल करते थे।
एक दिन प्रिया को राजेश अंकल की असली बेटी प्रिया का फोन आया।
"हैलो, मैं प्रिया बोल रही हूं। मेरे पापा राजेश कुमार का नंबर आपके पास से आया है।" आवाज में परेशानी थी।
"हां, मैं जानती हूं।" प्रिया ने कहा।
"वो कैसे हैं? मैं दो साल से संपर्क नहीं कर पाई। काम में बहुत व्यस्त रहती हूं।" बेटी की आवाज में अपराधबोध था।
प्रिया ने नरमी से सारी बात बताई।
पुनर्मिलन का दिन
एक हफ्ते बाद राजेश अंकल की असली बेटी प्रिया अमेरिका से आई। उसने देखा कि उसके पिता कितने खुश हैं।
"पापा, मुझे माफ करें। मैं आपको अकेला छोड़कर गई।" बेटी ने रोते हुए कहा।
"कोई बात नहीं बेटी। तुम्हारी जगह भगवान ने मुझे दूसरी प्रिया दी है।" राजेश अंकल ने कहा।
दोनों प्रिया में दोस्ती हो गई। असली बेटी ने तय किया कि वो अब साल में कम से कम तीन बार भारत आएगी।
एक साल बाद की खुशखबरी
शादी के एक साल बाद प्रिया मां बनने वाली थी। राजेश अंकल की खुशी का ठिकाना नहीं था।
"अब मैं दादाजी बनने वाला हूं।" वो हर किसी को बताते।
जब प्रिया का बेटा हुआ तो राजेश अंकल ने कहा, "इसका नाम राज रखते हैं। मेरे नाम पर।"
प्रिया और अभिषेक ने खुशी से मान लिया।
आज छोटा राज तीन साल का है और राजेश दादाजी उसे बहुत प्यार करते हैं।
आज की सच्चाई
आज भी जब प्रिया उस रात को याद करती है जब उसे गलत नंबर से फोन आया था, तो उसे लगता है कि यह कोई गलती नहीं थी।
राजेश अंकल कहते हैं, "प्रिया, तुमने मेरी जिंदगी बदल दी। मैं अकेला था, अब मेरे पास पूरा परिवार है।"
प्रिया का जवाब होता है, "अंकल, आपने मुझे सिखाया कि दूसरों की मदद करने से खुद को खुशी मिलती है।"
अभिषेक हमेशा कहता है कि अगर प्रिया ने उस रात राजेश अंकल की मदद नहीं की होती तो शायद उन्हें मिलने का मौका ही नहीं मिलता।
राजेश अंकल की असली बेटी अब अमेरिका में अपने पिता के लिए चिंता नहीं करती क्योंकि वो जानती है कि प्रिया और अभिषेक उनका पूरा ख्याल रखते हैं।
कहानी से सीख
प्रिया की कहानी सिखाती है कि कभी-कभी गलतियां हमें सही रास्ते पर ले जाती हैं। एक गलत फोन नंबर ने तीन जिंदगियों को बदल दिया।
राजेश अंकल अकेलेपन से निकले, प्रिया को प्यार मिला और अभिषेक को जीवनसाथी मिला। सबसे बड़ी बात यह है कि एक नया परिवार बना जिसमें सिर्फ खून का रिश्ता नहीं, बल्कि दिल का रिश्ता है।
आज के जमाने में लोग अपने परिवार से दूर रहते हैं। बुजुर्ग अकेले रह जाते हैं। प्रिया की तरह अगर हम थोड़ी सी संवेदना दिखाएं तो कितनी जिंदगियां खुशहाल हो सकती हैं।
यह कहानी यह भी बताती है कि प्यार सिर्फ फिल्मों की तरह नहीं होता। असल जिंदगी में प्यार धीरे-धीरे, समझदारी और परवाह से पनपता है।
अंतिम शब्द
आज भी जब प्रिया का फोन बजता है तो वो हमेशा उत्साह से उठाती है। उसे लगता है कि शायद कोई और व्यक्ति मदद मांग रहा हो।
राजेश दादाजी अपने पोते राज को हमेशा कहते हैं, "बेटा, जब भी कोई मदद मांगे तो हमेशा आगे बढ़ना। हो सकता है तुम्हारी छोटी सी मदद किसी की पूरी जिंदगी बदल दे।"
गलत नंबर से शुरू हुई यह कहानी आज एक खुशहाल परिवार की कहानी है। यह साबित करती है कि अच्छाई कभी बेकार नहीं जाती और मदद करने वाले के हाथ हमेशा भरे रहते हैं।
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आपके लिए संदेश
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प्रिया की तरह अगर हम सभी थोड़ी सी संवेदना दिखाएं तो यह दुनिया कितनी खूबसूरत हो सकती है। इस कहानी को अपने दोस्तों के साथ साझा करें और उन्हें भी प्रेरणा दें कि छोटी सी मदद कैसे बड़े बदलाव ला सकती है।, और हां एक प्यारा सा comment जरूर करें 🙏
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