ऑटो रिक्शा वाले अंकल की कहानी
ऑटो रिक्शा वाले अंकल की कहानी
बारिश की रात और एक अनजान सफर
मुंबई की भागदौड़ भरी जिंदगी में अर्जुन का दिन हमेशा की तरह देर से खत्म हुआ था। रात के नौ बज चुके थे और बांद्रा के उसके आफिस से घर पहुंचने के लिए उसे अंधेरी तक जाना था। बारिश हो रही थी और सभी टैक्सी बुक हो चुकी थीं।
आफिस के बाहर खड़े होकर अर्जुन ने कई बार फोन ऐप्स चेक किए, लेकिन कोई कार उपलब्ध नहीं थी। तभी एक पुराना ऑटो रिक्शा उसके पास आकर रुका।
"साहब, कहां जाना है?" ऑटो रिक्शा चलाने वाले अंकल ने पूछा।
अर्जुन ने देखा कि ऑटो रिक्शा बहुत पुराना था और ऑटो रिक्शा वाले अंकल की उम्र साठ के आसपास होगी। उसके बाल सफेद हो चुके थे और चेहरे पर थकान साफ दिख रही थी।
"अंधेरी जाना है अंकल। चलेंगे?" अर्जुन ने पूछा।
"हां बेटा, बैठ जा। बारिश में भीगेगा तो बीमार हो जाएगा।" अंकल ने प्यार से कहा।
सफर की शुरुआत
अर्जुन ऑटो में बैठ गया और अंकल ने रिक्शा स्टार्ट की। ट्रैफिक बहुत था और बारिश की वजह से रास्ते में पानी भर गया था। ऑटो धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था।
"अंकल, इतनी रात को काम कर रहे हैं? घर नहीं जाना?" अर्जुन ने बातचीत शुरू की।
"बेटा, मजबूरी है। दिन में कमाई कम हो जाती है। रात में लोग ज्यादा पैसे देते हैं।" अंकल ने जवाब दिया।
अर्जुन ने महसूस किया कि अंकल की आवाज में एक अजीब सा दुख था। उसने फोन रख दिया और अंकल से बात करने का फैसला किया।
"आप कितने सालों से ये काम कर रहे हैं?" अर्जुन ने पूछा।
"पच्चीस साल हो गए बेटा। पहले मैं एक कंपनी में काम करता था, लेकिन नौकरी चली गई थी। फिर ये ऑटो खरीदा था और तब से यही काम कर रहा हूं।"
अंकल की कहानी
ट्रैफिक में फंसे हुए अंकल ने अपनी जिंदगी की कहानी बताना शुरू की।
"मेरा नाम रमेश है बेटा। मैं छत्तीसगढ़ से आया था मुंबई में काम की तलाश में। उस समय मेरी उम्र केवल बाईस साल थी। बड़े सपने थे कि मुंबई में अच्छी नौकरी मिलेगी और घर वालों को पैसे भेज सकूंगा।"
अर्जुन ध्यान से सुन रहा था। बारिश की आवाज़ और ट्रैफिक के बीच अंकल की आवाज़ बहुत साफ सुनाई दे रही थी।
"पहले दो साल तो बहुत मुश्किल रहे। छोटे-मोटे काम करके गुजारा चलाता था। फिर एक इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी में काम मिल गया। वहां पंद्रह साल तक काम किया।"
"फिर क्या हुआ अंकल?"
"कंपनी बंद हो गई बेटा। मैं चालीस साल का था उस समय। कोई और नौकरी नहीं मिली। छोटे बच्चे थे, पत्नी बीमार रहती थी। फिर किसी ने सुझाव दिया कि ऑटो खरीद लो।"
संघर्ष की दास्तान
ट्रैफिक थोड़ा कम हुआ और ऑटो तेज़ी से आगे बढ़ने लगा। लेकिन अंकल की कहानी जारी रही।
"ऑटो खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। गांव में जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा था, उसे बेच दिया। फिर कर्ज़ भी लेना पड़ा। ये ऑटो लेकर सड़क पर निकला तो पता चला कि ये काम कितना मुश्किल है।"
"क्यों अंकल? क्या प्रॉब्लम थी?"
"बेटा, रोज सुबह चार बजे उठकर ऑटो साफ करना, फिर दिन भर सड़क पर भटकना। कभी कस्टमर मिलते, कभी नहीं। ट्रैफिक पुलिस की मार, गुंडों की रंगदारी, पेट्रोल के बढ़ते दाम - सब कुछ मिलकर जिंदगी को मुश्किल बना देता था।"
अर्जुन को अहसास हो रहा था कि वो जिस आदमी के ऑटो में बैठा है, उसने जिंदगी में कितना संघर्ष किया है।
बच्चों के सपने
"आपके बच्चे अब कितने बड़े हैं अंकल?" अर्जुन ने पूछा।
अंकल के चेहरे पर एक मुस्कान आई।
"दो बच्चे हैं बेटा। लड़का अब इंजीनियर है, किसी कंपनी में काम करता है। लड़की ने एमबीए किया है, उसकी भी अच्छी जॉब है।"
"वाह! ये तो बहुत खुशी की बात है अंकल।"
"हां बेटा, भगवान का दिया है। दिन-रात मेहनत की है ताकि उनकी पढ़ाई में कोई कमी न हो। कभी-कभी रात के बारह-एक बजे तक काम करता था ताकि उनकी फीस जमा कर सकूं।"
अंकल की आवाज़ में गर्व साफ झलक रहा था।
"मैंने अपने बच्चों से कहा था कि तुम्हें मेरी तरह संघर्ष नहीं करना है। पढ़ाई करो और अच्छी जिंदगी जियो।"
एक बाप का प्यार
"अंकल, अब आपके बच्चे कमा रहे हैं तो आप काम क्यों कर रहे हैं? आराम कर सकते हैं न?" अर्जुन ने सवाल किया।
अंकल ने एक लंबी सांस ली।
"बेटा, वो मुझसे कहते भी हैं कि पापा अब काम मत करिए, हम हैं न। लेकिन मैं कैसे बैठूं? पच्चीस साल से सड़क पर हूं, अब घर में बैठने की आदत नहीं है।"
"हां यह भी तो बात है अंकल।"
"और एक बात है बेटा। मेरे बच्चे अच्छी जिंदगी जी रहे हैं। उनके ऊपर मैं बोझ नहीं बनना चाहता। अभी भी मैं अपनी मेहनत से खा सकता हूं तो क्यों किसी पर निर्भर रहूं?"
अर्जुन की आंखों में आंसू आ गए। उसने सोचा कि आज के जमाने में कितने बाप अपने बच्चों के लिए इतना सोचते हैं।
जिंदगी के सबक
ऑटो अंधेरी के पास पहुंच रहा था। लेकिन अर्जुन चाहता था कि ये सफर और लंबा हो।
"अंकल, आपको कभी लगता है कि आपकी जिंदगी में कुछ गलत हुआ है?"
"नहीं बेटा। ऊपरवाला जो भी देता है, अच्छे के लिए देता है। अगर मेरी नौकरी नहीं गई होती तो मैं इतना मजबूत नहीं बन पाता। संघर्ष ने मुझे सिखाया है कि जिंदगी में कुछ भी असंभव नहीं है अगर इंसान की इच्छा शक्ति मजबूत हो।"
अर्जुन हैरान था। जो आदमी इतनी मुश्किलों से गुजरा था, वो इतना सकारात्मक कैसे हो सकता था।
"मैं अपने बच्चों को हमेशा कहता हूं कि पैसा जिंदगी में जरूरी है, लेकिन सबसे जरूरी चीज़ है संस्कार। मेहनत करो, ईमानदारी से कमाओ और दूसरों की मदद करो।"
अप्रत्याशित मोड़
अंधेरी स्टेशन के पास पहुंचते ही अचानक ऑटो रुक गया।
"क्या हुआ अंकल?" अर्जुन ने पूछा।
"लगता है कुछ प्रॉब्लम है बेटा। जरा देखता हूं।" अंकल ने ऑटो से उतरकर इंजन चेक किया।
बारिश तेज हो गई थी और अंकल पूरी तरह भीग रहे थे। अर्जुन भी उतर गया और अंकल की मदद करने लगा।
"अंकल, आप अंदर बैठिए। मैं देखता हूं।" अर्जुन ने कहा।
"नहीं बेटा, तुम अंदर बैठो। मैं इसे ठीक कर देता हूं।" अंकल ने जिद की।
पंद्रह मिनट की कोशिश के बाद ऑटो स्टार्ट हुआ। दोनों अंदर बैठ गए, पूरी तरह भीगे हुए।
"सॉरी बेटा, तकलीफ हो गई।" अंकल ने माफी मांगी।
"अरे अंकल, ये कोई बात है? बल्कि आज मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला।"
सफर का अंत
अर्जुन के घर के पास पहुंचते ही उसने पर्स निकाला। मीटर में साठ रुपए आया था, लेकिन अर्जुन ने पांच सौ का नोट निकाला।
"अंकल, ये रखिए।" अर्जुन ने पैसे दिए।
"अरे बेटा, इतने ज्यादा पैसे क्यों? साठ रुपए हुए हैं।" अंकल ने इनकार किया।
"अंकल, आज आपने मुझे जिंदगी का सबसे बड़ा सबक सिखाया है। ये पैसे बहुत कम हैं उसके लिए।"
अंकल की आंखों में आंसू आ गए।
"भगवान तुम्हारा भला करे बेटा। तुमने एक बूढ़े आदमी की बात को इतने धैर्य से सुना।"
"अंकल, मैं रोज इसी रूट से जाता हूं। अगर आप दिखें तो आपके ऑटो में ही बैठूंगा।"
जिंदगी बदल गई
उस रात के बाद अर्जुन की जिंदगी बदल गई। वो अगले दिन से रमेश अंकल को ढूंढने लगा और जब भी वो मिलते, अर्जुन उनके ऑटो में ही सफर करता।
धीरे-धीरे अर्जुन को पता चला कि रमेश अंकल कितने अच्छे इंसान हैं। वो गरीब बच्चों की पढ़ाई में मदद करते थे और बीमार लोगों को मुफ्त में अस्पताल पहुंचाते थे।
एक दिन अर्जुन ने रमेश अंकल से कहा, "अंकल, आप मेरे हीरो हैं। आपने बिना किसी शिकायत के जिंदगी की हर मुश्किल का सामना किया है।"
"बेटा, जिंदगी में संघर्ष तो होता रहता है। असली बात ये है कि हम उससे कैसे निपटते हैं। अगर हमारे इरादे नेक हैं और मेहनत ईमानदार है तो भगवान हमेशा साथ देता है।"
महीनों बाद
छह महीने बाद अर्जुन ने अपनी कंपनी में रमेश अंकल के छोटे बेटे के लिए एक अच्छी जॉब की व्यवस्था कराई। जब रमेश अंकल को पता चला तो वो रो पड़े।
"बेटा, तूने इतना क्यों किया?"
"अंकल, आपने मुझे जिंदगी जीना सिखाया है। आपके बेटे को अच्छी जॉब मिलेगी तो आप भी आराम कर सकेंगे।"
"लेकिन बेटा, मैं ऑटो चलाना बंद नहीं कर सकूंगा। ये मेरी जिंदगी है।"
अर्जुन हंस दिया। उसे पता था कि रमेश अंकल कभी बैठ नहीं सकते। काम करना उनकी फितरत में है।
एक साल बाद
एक साल बाद अर्जुन की शादी हुई। उसने रमेश अंकल को अपनी शादी में बुलाया और उन्हें सबसे इज्जत की जगह बिठाया।
"ये हैं रमेश अंकल, मेरे गुरु और मेरे दोस्त।" अर्जुन ने सबको बताया।
रमेश अंकल की आंखों में खुशी के आंसू थे। उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि एक रात के सफर में मिला लड़का उनकी जिंदगी का इतना अहम हिस्सा बन जाएगा।
शादी में रमेश अंकल ने अर्जुन से कहा, "बेटा, तुमने मुझे सिखाया है कि रिश्ते पैसे से नहीं, दिल से बनते हैं। आज मैं बहुत खुश हूं।"
आज की सच्चाई
आज भी जब अर्जुन मुंबई की सड़कों पर ऑटो रिक्शा देखता है, तो उसे रमेश अंकल की बातें याद आ जाती हैं। वो समझ गया है कि असली अमीरी पैसे में नहीं, बल्कि इंसान के संस्कारों में होती है।
रमेश अंकल आज भी ऑटो चलाते हैं, लेकिन अब सिर्फ अपनी मर्जी से। उनके बच्चे अच्छी जिंदगी जी रहे हैं और रमेश अंकल का चेहरा अब हमेशा खुश रहता है।
अर्जुन ने अपनी कंपनी में एक नई पॉलिसी शुरू की है जिसके तहत कंपनी के ड्राइवरों और सफाई कर्मचारियों के बच्चों की पढ़ाई में मदद की जाती है। इस पॉलिसी का नाम है "रमेश अंकल स्कॉलरशिप।"
समापन
रमेश अंकल की कहानी सिखाती है कि जिंदगी में चाहे जितनी भी मुश्किलें आएं, अगर हमारे इरादे नेक हैं और मेहनत ईमानदार है तो हम हर मुसीबत का सामना कर सकते हैं। उन्होंने साबित किया कि असली खुशी दूसरों को खुश देखने में है।
आज जब भी आप किसी ऑटो रिक्शा, टैक्सी या बस में सफर करें, तो जरा चालक से बात करें। हो सकता है उनकी जिंदगी की कहानी आपको एक नया नजरिया दे जाए। हर इंसान के पास कहने के लिए एक कहानी होती है, बस सुनने वाला चाहिए।
रमेश अंकल जैसे लोग हमारे समाज के असली हीरो हैं। वो बिना किसी शोर-शराबे के अपना काम करते रहते हैं और समाज को आगे बढ़ाते रहते हैं।
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