चार दोस्त और मनाली की बर्फीली यादें - शिमला की कहानी

 हमारी कहानी की शुरुआत


पुराने दोस्तों से मिलने और नई कहानियाँ लिखने के लिए हम निकल पड़े थे पहाड़ों की ओर

कॉलेज के एग्ज़ाम्स


कॉलेज के एग्ज़ाम्स ख़त्म हुए थे। मैं और मेरे बाकी 2 दोस्तों ने पहले ही सोच लिया था कि इस बार एग्ज़ाम्स ख़त्म होने के बाद कहीं घूमने ज़रूर चलेंगे। लेकिन सबसे बड़ा सवाल था – जाएंगे कहाँ? 🤔


हम तीनों अब तक अलग-अलग जगहों के नाम सोचकर प्लान बना ही रहे थे कि दो दिन बाद अचानक मेरे फोन पर राकेश का नाम चमका। राकेश, हमारा बचपन का यार, जो 12वीं पूरी करने के बाद अपने परिवार के पास मनाली चला गया था। उसकी फैमिली वहीं रहती थी, और वो कुछ समय के लिए यहां अपनी बुआ के घर पढ़ाई कर रहा था। फोन पर उसने बड़ी गर्मजोशी से कहा — 'इस बार मनाली आ जाओ, मिलकर घूमेंगे।


मुझे तो बचपन से ही हिल स्टेशन बेहद पसंद थे, और इसी बहाने पुराने दोस्त से भी मुलाकात हो जाएगी। मैंने बिना सोचे-समझे हां कर दी और बाकी दोनों दोस्त – विपिन और धीरज – को भी सब बता दिया।


अब बस हमें घरवालों से परमिशन लेनी थी। चूंकि हम सब साथ जा रहे थे, घरवालों ने भी हामी भर दी। तीन दिन बाद हमारा सफ़र तय था। धीरज के पास गाड़ी थी, तो सफ़र और भी आसान हो गया।


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2 दिसंबर

मनाली यात्रा के लिए स्नैक्स, घर का खाना और ठंडी ड्रिंक्स


2 दिसंबर को हम मनाली के लिए निकल पड़े। घर से निकलते-निकलते शाम हो चुकी थी। पूरा दिन पैकिंग और घूमने की जगहों के बारे में सोचने, और मस्ती के प्लान बनाने में निकल गया। लेकिन आखिर शाम 5 बजे हम रवाना हो चुके थे।


हम सब बेहद खुश थे — एक तो दोस्तों के साथ ट्रिप, और ऊपर से पुराने दोस्त राकेश से मिलने का मौका, जिसे देखे हुए 3 साल हो गए थे। दिसंबर का महीना था, और इस समय मनाली में हेवी स्नोफॉल होती है।


खाने-पीने का भी हमने पूरा जुगाड़ कर लिया था — घर का बना परांठा और अचार, साथ में ढेर सारे कुरकुरे, चिप्स के पैकेट और ठंडी कोल्ड ड्रिंक, ताकि सफर में भूख लगे तो मस्ती के साथ पेट भी भर जाए।


हम दिल्ली में रहते हैं, इसलिए मनाली पहुंचने में हमें करीब 12 घंटे लगने वाले थे। मैं तो और भी ज़्यादा खुश था क्योंकि मेरा सपना था — शाम का वक्त हो, हल्की-हल्की धुंध सड़क पर फैल रही हो, और मैं दोस्तों के साथ सड़क पर घूम रहा हूं।


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रात का सफ़र


रात का हाईवे सफर, दूर दिखती बर्फ से ढकी पहाड़ियां

रात का सफ़र… सुनसान हाईवे पर गाड़ी के पहिए सरसराते हुए दौड़ रहे थे, स्पीकर से हमारे पसंदीदा गाने बह रहे थे, और खिड़की से आती ठंडी हवा चेहरे को छूकर मानो कह रही हो — ‘ये पल यादगार है।’ सुबह की पहली रोशनी के साथ ही दूर पहाड़ बर्फ की सफ़ेद चादर ओढ़े नज़र आने लगे।


मनाली पहुँचते ही हमारी नज़र दूर खड़े राकेश पर पड़ी। ठंडी हवा में उसके चेहरे पर मुस्कान थी, जैसे हमें देखकर सारी दूरियाँ मिट गई हों। हम तीनों बिना सोचे-समझे उसकी ओर भागे और कसकर गले लगा लिया। तीन साल का इंतज़ार उस एक पल में जैसे पिघल गया।


अगले 2 दिन हम मनाली की गलियों में घूमते रहे — हिडिम्बा मंदिर, मॉल रोड, और सबसे मज़ेदार – स्नोफॉल में बर्फ की लड़ाई। हमने खूब फोटो खींची, ढेर सारी बातें कीं, और ठंडी में गरम-गरम चाय का मज़ा लिया।


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दोस्तों के साथ मनाली रोड ट्रिप की अविस्मरणीय यादें


आखिर वो वक्त भी आ गया, जब वापसी की राह पकड़नी थी। गाड़ी में बैठते हुए हम सब अनकहे शब्दों के बीच चुपचाप मुस्कुरा रहे थे… मन में सफर की मीठी यादें थीं, और कहीं भीतर पुराने दोस्त से दूर होने का हल्का-सा खालीपन भी।


घर लौटते वक्त खिड़की से बाहर पहाड़ों और बर्फ को देखते हुए हम सब एक-दूसरे से यही कह रहे थे — "यार, अगली बार फिर यहीं आएंगे।"


आज भी जब भी ठंडी हवा चेहरे को छूती है, मनाली की वो बर्फ, राकेश की मुस्कान, और हमारी हंसी ठिठोली याद आ जाती है।


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मैं बहुत सी कहानियां लिखता हू, लेकिन हर बार सिर्फ कहानी ही नहीं होती, कुछ कुछ मेरे जीवन का सच्चा हिस्सा भी होती है, यह भी उनमें से एक थी । 


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