OYO Room 108 Real Horror Story in Hindi – Jaipur Hotel की सच्ची घटना
OYO Room 108 Real Horror Story in Hindi – Jaipur Hotel की सच्ची घटना
क्या आपने कभी सोचा है कि OYO Room की Horror Stories सिर्फ अफ़वाह हैं… या इनके पीछे कोई काली सच्चाई छुपी है?
आज की ये Real Horror Story in Hindi, OYO Hotel Room 108 में घटी एक ऐसी रहस्यमयी घटना है जो आपको रात भर सोने नहीं देगी।
एक साधारण होटल बुकिंग…
एक खूबसूरत कमरा…
और फिर कुछ ऐसा हुआ जिसे समझ पाना आज तक नामुमकिन है।
अगर आप Haunted Hotel Stories, Real Ghost Incidents, OYO Horror Experience, और Indian Paranormal Stories पढ़ना पसंद करते हैं—
तो ये कहानी आपके होश उड़ा देगी।
कहानी की शुरुआत
अर्जुन को जयपुर में एक दिन रुकना था। ऑफिस का काम था। सुबह की मीटिंग थी फिर शाम को वापस दिल्ली जाना था। उसने सोचा कि रात को आराम से सो लेगा और सुबह तैयार होकर मीटिंग में चला जाएगा।
उसने अपने फोन पर होटल देखने शुरू किए। ज्यादातर होटल दो से तीन हजार के बीच थे। एक दिन के लिए इतना खर्च करना उसे ठीक नहीं लगा।
तभी उसे अपनी मोबाइल स्क्रीन पर एक विज्ञापन दिखा। बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था - "सिर्फ आज! साठ प्रतिशत छूट!"
अर्जुन ने क्लिक किया। एक ओयो होटल था। नाम था "ब्लू स्टार गेस्ट हाउस"। कीमत सिर्फ सात सौ निन्यानबे रुपये।
उसने रिव्यू देखे। 3.8 Star ⭐। रिव्यू बुरे नहीं थे। कुछ लोगों ने लिखा था कि कमरा साफ है। कुछ ने कहा था कि लोकेशन ठीक है।
अर्जुन ने ज्यादा नहीं सोचा। पेमेंट कर दिया। बुकिंग हो गई। कन्फर्मेशन आ गया।
"Room No. 108"
उसने बैग पैक किया और जयपुर के लिए निकल गया।
होटल पहुंचकर जो पहला संकेत मिला उसे नजरअंदाज कर दिया
शाम को सात बजे अर्जुन जयपुर पहुंचा। गूगल मैप की मदद से होटल ढूंढा। होटल एक पुरानी गली में था। आसपास छोटी-छोटी दुकानें थीं। कुछ बंद हो चुकी थीं।
होटल की बिल्डिंग तीन मंजिला थी। बाहर से देखने पर आम सी लग रही थी। नीले रंग का बोर्ड लगा था जिस पर ओयो का लोगो था।
अर्जुन अंदर गया। एक छोटा सा रिसेप्शन था। वहां एक युवक बैठा था जो अपने फोन में कुछ देख रहा था।
"नमस्कार, मेरा नाम अर्जुन है। मैंने एक कमरे की बुकिंग की है।"
युवक ने ऊपर देखा। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था।
"आईडी दीजिए।"
अर्जुन ने अपना आधार कार्ड दिया। युवक ने रजिस्टर में कुछ लिखा और एक चाबी दी।
"कमरा नंबर 108। पहली मंजिल। सीढ़ियां बाईं तरफ हैं।"
अर्जुन ने चाबी ली। तभी उसने देखा कि रिसेप्शन के पीछे की दीवार पर एक नोटिस चिपका था। बड़े अक्षरों में लिखा था:
"कमरा नंबर 108 में कोई परेशानी हो तो तुरंत रिसेप्शन पर संपर्क करें।"
अर्जुन को अजीब लगा। सिर्फ 108 के लिए? बाकी कमरों के लिए क्यों नहीं?
"ये क्या है?" उसने पूछा।
युवक ने नोटिस की तरफ देखा। "कुछ नहीं। बस एक सावधानी है। कभी-कभी उस कमरे में पानी की समस्या होती है। बस इसलिए।"
अर्जुन को संतोषजनक जवाब नहीं लगा लेकिन वो थक गया था। उसने ज्यादा सवाल नहीं किए।
कमरे में घुसते ही महसूस हुआ कि कुछ गलत है
अर्जुन पहली मंजिल पर पहुंचा। गलियारे में मद्धम रोशनी थी। कुल छह कमरे थे। 101 से 107 तक। लेकिन 108 अलग था। वो गलियारे के एकदम आखिर में था। जैसे अलग से बना हुआ।
अर्जुन ने सोचा शायद बाद में बनाया होगा।
उसने चाबी से ताला खोला। दरवाजा चरमराया। अंदर अंधेरा था। उसने स्विच ढूंढा और लाइट जलाई।
कमरा छोटा था। एक डबल बेड, एक छोटी टेबल, एक कुर्सी, और एक अलमारी। बाथरूम साइड में था। सब कुछ सामान्य था।
लेकिन हवा भारी थी। जैसे कमरे में हवा का आना-जाना बंद हो। उसने खिड़की खोलने की कोशिश की। खिड़की जाम थी। नहीं खुली।
अर्जुन ने सोचा कि कोई बात नहीं। एसी चला लूंगा। उसने एसी ऑन किया। एसी शुरू हुआ लेकिन ठंडी हवा की जगह एक अजीब सी आवाज आने लगी।
घर्र... घर्र... घर्र...
अर्जुन ने एसी बंद कर दिया। वैसे भी मौसम ठंडा था। एसी की जरूरत नहीं थी।
उसने बैग रखा और बाथरूम में गया। फ्रेश होने के बाद उसने खाना मंगवाने का सोचा। फोन निकाला तो देखा कि सिग्नल बहुत कमजोर था।
कभी एक बार आता, कभी गायब हो जाता। आखिरकार उसने किसी तरह खाना ऑर्डर किया।
खाना आने में चालीस मिनट लगे। तब तक अर्जुन बेड पर लेट गया। पलंग आरामदायक था। नरम गद्दा। साफ चादर।
उसने सोचा कि शायद ज्यादा सोच रहा है। कमरा ठीक है। बस थोड़ा पुराना है।
रात के नौ बजे शुरू हुई वो आवाजें
खाना खाने के बाद अर्जुन ने लैपटॉप निकाला। कल की मीटिंग की तैयारी करनी थी। लेकिन वाईफाई नहीं चल रहा था। मोबाइल डेटा भी धीमा था।
उसने नीचे जाकर रिसेप्शन वाले से पूछने का सोचा लेकिन फिर छोड़ दिया। वैसे भी सारे नोट्स फोन में थे।
रात के नौ बजे अर्जुन तैयारी कर रहा था। तभी उसे एक आवाज सुनाई दी।
टक... टक... टक...
जैसे कोई दरवाजे पर दस्तक दे रहा हो। लेकिन हल्की दस्तक। बहुत हल्की।
अर्जुन उठा और दरवाजे के पास गया। "कौन है?"
कोई जवाब नहीं आया।
दरवाजे की चेन लगी हुई थी। उसने चेन पर ही दरवाजा थोड़ा खोला और झांककर देखा।
बाहर कोई नहीं था। गलियारा खाली था।
अर्जुन ने दरवाजा बंद किया और वापस आ गया। उसने सोचा शायद हवा से कुछ टकराया होगा।
लेकिन दस मिनट बाद फिर वही आवाज।
टक... टक... टक...
इस बार तेज थी। और पैटर्न अलग था। तीन बार दस्तक, फिर रुकना, फिर तीन बार दस्तक।
अर्जुन फिर दरवाजे पर गया। इस बार उसने तेजी से दरवाजा खोला।
बाहर कोई नहीं था।
"कोई मजाक कर रहा है क्या?" उसने जोर से बोला।
गलियारे में सन्नाटा था। दूसरे कमरों से कोई आवाज नहीं आ रही थी। जैसे पूरी इमारत खाली हो।
अर्जुन वापस अंदर आया। अब उसे बेचैनी होने लगी।
जब आईने में दिखा वो चेहरा जो उसका नहीं था
अर्जुन ने खुद को शांत रखने की कोशिश की। उसने पानी पिया और फिर से अपने नोट्स देखने लगा।
रात के साढ़े दस बजे उसने सोने का फैसला किया। कल सुबह जल्दी उठना था।
बाथरूम में जाकर दांत साफ करते समय उसने आईने में अपना चेहरा देखा। थका हुआ दिख रहा था। आंखों के नीचे काले घेरे थे।
उसने मुंह धोया और तौलिये से पोंछा। फिर जब आईने में देखा तो उसकी सांस रुक गई।
आईने में उसके पीछे कोई खड़ा था।
एक आदमी। धुंधला सा। लेकिन साफ दिख रहा था।
अर्जुन तेजी से पलटा।
कोई नहीं था।
बाथरूम खाली था।
उसने फिर से आईने में देखा। अब वहां सिर्फ उसका ही चेहरा था।
"नहीं... मैं थक गया हूं। दिमाग चीजें दिखा रहा है।" अर्जुन ने खुद को समझाया।
वो जल्दी से बाथरूम से बाहर आ गया। लाइट बंद की और बेड पर लेट गया।
लेकिन नींद नहीं आई। बार-बार वही चेहरा याद आता। वो आदमी कौन था?
रात के बारह बजे जब फोन पर आया अजीब मैसेज
रात के बारह बजे अर्जुन अभी भी जाग रहा था। उसने सोचा कि फोन में कुछ देख लेता हूं। शायद नींद आ जाए।
तभी उसके फोन पर एक मैसेज आया।
नंबर अजनबी था। लेकिन मैसेज हिंदी में था।
"कमरा 108 से निकल जाओ। अभी निकल जाओ। बहुत देर हो जाएगी।"
अर्जुन के हाथ कांप गए। ये क्या था?
उसने उस नंबर पर कॉल करने की कोशिश की। नंबर स्विच ऑफ था।
उसने मैसेज फिर से पढ़ा। किसी ने कैसे जान लिया कि वो कमरा नंबर 108 में है?
तभी दूसरा मैसेज आया।
"1997 में इस कमरे में एक हत्या हुई थी। एक आदमी को मारा गया था। उसकी आत्मा अभी भी यहीं है।"
अर्जुन की सांसें तेज हो गईं। ये कोई मजाक था। जरूर कोई मजाक था।
उसने रिसेप्शन वाले को फोन करने की कोशिश की। लेकिन कोई नंबर नहीं मिला। बुकिंग में सिर्फ ऐप का नंबर था जो रात को काम नहीं करता।
तीसरा मैसेज आया।
"वो तुम्हें जाने नहीं देगा। उसे किसी की जरूरत है। हर महीने एक शिकार।"
अर्जुन उठकर खड़ा हो गया। उसने तुरंत अपना बैग उठाया। उसे यहां से निकलना था।
वो दरवाजे की तरफ बढ़ा। चाबी से ताला खोलने लगा।
लेकिन ताला नहीं खुला।
उसने फिर कोशिश की। चाबी घूम रही थी लेकिन ताला नहीं खुल रहा था।
जब दरवाजा बंद हो गया और रोशनी चली गई
अर्जुन ने जोर लगाया। पूरी ताकत से दरवाजे को धक्का दिया। लेकिन दरवाजा नहीं खुला।
"खोलो! कोई है?" वो चिल्लाया।
कोई जवाब नहीं आया।
तभी अचानक लाइट चली गई। पूरा कमरा अंधेरे में डूब गया।
अर्जुन ने फोन की टॉर्च ऑन की। लेकिन फोन की बैटरी अचानक तेजी से कम हो रही थी। अभी तो पचास प्रतिशत थी। अब तीस... अब बीस...
"नहीं... नहीं..." अर्जुन फुसफुसाया।
फोन बंद हो गया।
अब सिर्फ अंधेरा था। पूरा अंधेरा।
अर्जुन दीवार के सहारे खड़ा हो गया। उसकी सांसें तेज चल रही थीं।
तभी उसे एक आवाज सुनाई दी। पास से। बहुत पास से।
"तुम यहां से नहीं जा सकते।"
आवाज गहरी थी। ठंडी थी।
अर्जुन ने चारों तरफ देखा लेकिन कुछ नहीं दिखा।
"कौन हो तुम? क्या चाहते हो?" अर्जुन की आवाज कांप रही थी।
"मैं यहीं हूं। इसी कमरे में। हमेशा से हूं।"
अर्जुन को लगा जैसे कोई उसके पीछे खड़ा है। उसने पलटने की हिम्मत नहीं की।
"तुम... तुम कौन हो?"
"मेरा नाम राजेश है। मैं यहां रहता था। 1997 में मेरे साथी ने मुझे यहीं मार दिया था। पैसों के लिए। उसने मेरा गला घोंट दिया और मेरी लाश दीवार में छिपा दी।"
अर्जुन के रोंगटे खड़े हो गए।
"मेरी लाश आज भी इस कमरे की दीवार में है। कमरे के पीछे की दीवार में। उन्होंने पेंट कर दिया। नया प्लास्टर कर दिया। लेकिन मैं यहीं हूं।"
जब पता चला इस कमरे का असली रहस्य
अर्जुन की आवाज बाहर नहीं आ रही थी। वो बोलना चाह रहा था लेकिन गला सूख गया था।
"हर महीने यहां कोई न कोई आता है। सस्ती बुकिंग देखकर। छूट देखकर। और फंस जाता है। मैं उन्हें रोकता हूं। एक रात। बस एक रात। मुझे अकेला नहीं रहना।"
"लेकिन... लेकिन सुबह?" अर्जुन ने हिम्मत करके पूछा।
"सुबह तुम चले जाओगे। तुम्हें कुछ याद नहीं रहेगा। तुम्हें लगेगा कि बस एक बुरा सपना था। लेकिन एक रात... एक रात मेरे साथ बितानी पड़ेगी।"
तभी अचानक लाइट वापस आ गई।
अर्जुन ने चारों तरफ देखा। कमरा खाली था। कोई नहीं था।
लेकिन पीछे की दीवार पर कुछ था। दीवार से पानी रिस रहा था। लाल रंग का पानी। जैसे खून हो।
अर्जुन उस दीवार के पास गया। दीवार गीली थी। लाल निशान थे।
उसने दीवार को छुआ। प्लास्टर ढीला था। जैसे अंदर से कोई धक्का दे रहा हो।
तभी दीवार में एक दरार आई। छोटी सी। फिर वो दरार बढ़ने लगी।
अर्जुन पीछे हट गया।
दीवार से एक हाथ निकला। सड़ा हुआ। हड्डियों वाला।
अर्जुन चीखना चाहता था लेकिन आवाज नहीं निकली।
हाथ हवा में लहराया। फिर वापस दीवार में चला गया।
दरार बंद हो गई। सब कुछ सामान्य हो गया।
सुबह जब आंख खुली तो सब भूल चुका था
सुबह छह बजे अर्जुन की आंख खुली।
वो बेड पर लेटा हुआ था। कपड़े पहने हुए थे। बैग पास में रखा था।
उसने चारों तरफ देखा। कमरा सामान्य था। साफ-सुथरा। पीछे की दीवार सूखी थी। कोई दाग नहीं। कोई दरार नहीं।
अर्जुन ने अपना फोन चेक किया। बैटरी पूरी थी। कोई अजीब मैसेज नहीं था।
उसे कुछ याद नहीं आ रहा था। बस एक धुंधला सा अहसास था कि रात को कुछ अजीब हुआ था। शायद बुरा सपना देखा हो।
उसने तैयार होकर बैग उठाया। दरवाजा आसानी से खुल गया।
नीचे रिसेप्शन पर वही युवक बैठा था।
"चेक-आउट करना है," अर्जुन ने कहा।
युवक ने रजिस्टर में कुछ लिखा और सिर हिलाया।
"कैसा रहा?" उसने पूछा।
"ठीक था," अर्जुन ने कहा। हालांकि उसे ऐसा क्यों लग रहा था कि कुछ गलत हुआ था?
बाहर निकलते समय उसने पीछे मुड़कर होटल को देखा। पहली मंजिल पर कमरा 108 की खिड़की से किसी ने उसे देखा। एक आदमी की परछाईं।
अर्जुन ने आंखें मलीं। जब दोबारा देखा तो कोई नहीं था।
उसने सिर हिलाया और टैक्सी में बैठ गया।
मीटिंग अच्छी रही। काम हो गया। शाम को वो दिल्ली वापस आ गया।
लेकिन उसके बाद कई हफ्तों तक उसे रात को अजीब सपने आते रहे। एक बंद कमरे के। एक सड़े हुए हाथ के। एक आवाज के जो कहती थी - "मैं यहीं हूं।"
तीन महीने बाद जब सच सामने आया
तीन महीने बाद अर्जुन ऑनलाइन न्यूज पढ़ रहा था। तभी एक खबर पर उसकी नजर गई।
"जयपुर में पुराने गेस्ट हाउस की दीवार से मिला कंकाल"
उसने खबर खोली।
"जयपुर के ब्लू स्टार गेस्ट हाउस में रेनोवेशन के दौरान कमरा नंबर 108 की पीछे की दीवार से एक कंकाल मिला है। पुलिस के मुताबिक ये कंकाल करीब पच्चीस से तीस साल पुराना है। शुरुआती जांच में पता चला है कि ये राजेश कुमार नाम के एक व्यक्ति का कंकाल है जो 1997 में गायब हो गया था।"
अर्जुन के हाथों से फोन छूटने लगा।
राजेश कुमार। वही नाम जो उस रात आवाज ने बताया था।
उसे सब याद आने लगा। वो रात। वो आवाजें। वो मैसेज। वो हाथ।
सब सच था।
उसने आगे पढ़ा।
"होटल मालिक ने बताया कि कमरा 108 में अक्सर अजीब घटनाएं होती थीं। मेहमान शिकायत करते थे। लेकिन कोई सबूत नहीं था। अब जब कंकाल मिला है तो पुलिस ने होटल को सील कर दिया है।"
अर्जुन ने फोन रख दिया। उसके हाथ कांप रहे थे।
उस रात जो कुछ हुआ था, वो सच था। राजेश की आत्मा सच में वहां थी। और न जाने कितने लोग उस कमरे में रुके होंगे। न जाने कितनों ने वो रात गुजारी होगी।
कुछ दिन बाद
कुछ दिन बीत गए। अब अर्जुन नॉर्मल हो गया है। और अपने कामों में व्यस्त हो गया है। उसने अपने आपको यह आश्वाशन दिया, की कम से कम वह वहां से सुरक्षित तो लौट आया।
कहानी से सीख
अर्जुन की कहानी से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। जब भी आप ओयो या किसी भी बजट होटल में रुकें, तो कुछ बातें जरूर ध्यान में रखें।
सबसे पहली बात, सिर्फ कीमत देखकर बुकिंग न करें। अगर कोई होटल बाकी होटलों से बहुत सस्ता है तो सोचिए क्यों। कोई न कोई कारण जरूर है।
दूसरी बात, रिव्यू जरूर पढ़ें। लेकिन सिर्फ स्टार रेटिंग नहीं। असली रिव्यू पढ़ें जो लोगों ने लिखे हैं। देखें कि लोगों ने कमरे की सफाई, सुरक्षा, और माहौल के बारे में क्या कहा है।
तीसरी बात, होटल की तस्वीरें ध्यान से देखें। अगर तस्वीरें बहुत पुरानी लगें या कम हों तो सावधान हो जाएं। अच्छे होटल नियमित रूप से अपनी तस्वीरें अपडेट करते हैं।
चौथी बात, लोकेशन देखें। होटल किस इलाके में है? क्या वो सुरक्षित इलाका है? रात में वहां आना-जाना कैसा है?
पांचवीं बात, दरवाजे और खिड़कियों के ताले चेक करें। देखें कि वो ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं।
❓आज के सवाल - जवाब
प्र.1: क्या होटलों में paranormal गतिविधियाँ सच होती हैं?
कई पुराने और कम भीड़ वाले होटलों में अजीब आवाज़ें, अचानक ठंड बढ़ जाना,
या दरवाज़ों का अपने आप बंद–खुल जाना जैसी घटनाएँ रिपोर्ट की गई हैं।
सब कुछ झूठ नहीं होता—कुछ कमरे वाकई रहस्यमयी होते हैं।
प्र.2: क्यों कई लोग कमरे नंबर 108, 13 और 306 से डरते हैं?
ये तीनों नंबर दुनिया भर की कई हॉरर स्टोरीज़ से जुड़े माने जाते हैं।
108 आध्यात्मिक नंबर है, 13 अशुभ माना जाता है,
और 306 कई होटलों में “unexplained activities” के लिए बदनाम है।
प्र.3: अगर होटल में कुछ अजीब लगे तो तुरंत क्या करना चाहिए?
• रिसेप्शन को कॉल करें
• रूम बदलने की मांग करें
• दरवाज़ा ठीक से लॉक रखें
• अकेले न रहें
रात में अनजाने से शोर या फुसफुसाहट को हल्के में मत लें।
आजकल कई travel apps 24×7 support, verified rooms, और safety checks देती हैं।
प्र.4: क्या हॉरर होटल स्टोरीज़ असल यात्रियों से inspired होती हैं?
हाँ, इंटरनेट पर मौजूद कई वायरल “hotel horror stories”
असली यात्रियों के experiences पर आधारित होती हैं।
कई bloggers और YouTubers भी अपनी रातों के डरावने अनुभव share करते हैं।
और ऐसी ही कहानियों से हम सीखते हैं कि
होटल सिर्फ सुंदर होना काफी नहीं—
सुरक्षित होना ज़रूरी है।
प्र.5: क्या आप कभी Oyo Hotel में रुके है?
अपनी राय comment करके जरूर बताए।
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अगर कहानी पसंद आई हो…
तो नीचे कमेंट में ज़रूर बताएं—आपको इस कहानी का कौन-सा पल सबसे ज्यादा डरावना लगा?
आपके कमेंट मुझे अगली और भी बेहतर कहानियाँ लिखने की प्रेरणा देते हैं।
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यह हिन्दी कहानियों की उन बेहतरीन साइट्स में से एक है जहाँ आपको हर हफ़्ते नई और दिलचस्प कहानियाँ पढ़ने को मिलती हैं—
✔ Horror Stories
✔ Love Stories
✔ Travel Stories
✔ Real Experience Stories
यहाँ हर कहानी detailed, original और engaging होती है—ताकि आपको पढ़ते समय एक अलग ही दुनिया का एहसास हो।
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